संस्मरण

बाबूजी चुप हो जाते थे

फादर्स डे 20 जून 2021 पर

बचपन के बाबूजी पापा की याद कभी भूल ही नहीं पाया। पोस्टमास्टर थे। उन्हें ईश्वर के यहां गए 36 वर्ष हो गए। संक्षिप्त स्पष्ट बोलते थे। घर में अनुशासन रहता था। मन की कभी कहते नहीं सुना। उनकी इच्छा नहीं हो तो चुप रहना ही उनका उत्तर होता था। बोलने पर मजबूर ही किया जाता तो मना कर देते थे कि मुझे यह खाना अच्छा नहीं लगता अथवा मुझे नए कपड़े नहीं चाहिए। मध्यम वर्ग में सीमित आय में हम पांच भाई बहनों का पालन एक चुनौती थी। अम्मा एवम हम भाई बहनों की आवश्यकता पूरी करने के बाद उनके पास शायद उनके स्वयं के लिए इतनी बचत नहीं हो पाती होगी। बड़ा होने पर मुझे जब बहुत कुछ समझ में आने लगा तो एक दिन हिम्मत करके पूछा कि आप अपनी जरूरतों इच्छाओं के लिए झूठ क्यों बोलते थे। मुस्कराते हुए बाबूजी ने मुझे जीवन की वह सीख दी जो किसी स्कूल कॉलेज में नहीं मिल सकती। बाबूजी का उत्तर था —  कैलाश, सच झूठ के उपदेश पुस्तकों में होते हैं। जीवन पुस्तकों के उपदेशों से नहीं चलता है बेटे। परिस्थिति समय विवेक से वह उत्तर देना चाहिए जिससे किसी का भला चाहे नहीं हो, पर तकलीफ कष्ट नहीं हो। समय अनुसार सबके भले के लिए झूठ बोलना ही पड़ता है। पाप पुण्य सत्य असत्य में मत उलझो। उत्तर ऐसा होना चाहिए जिससे सबका भला हो। जीवन खुली किताब होना भी पुस्तकों का उपदेश है। पर कई बार चुप रहकर छुपाना भी होता है। किसी अपने ने विश्वास से कुछ कहा है तो उसे सबको नहीं बतलाया जा सकता। नहीं बताने पर अथवा चुप रहने पर समाज परिवार रिश्तों की उंगली उठेगी लेकिन चुप रहना ही उचित है। बाबूजी की सीख मुझे जीवन में बहुत काम आई। बाबूजी के समान मैं भी कई बार चुप रहा अथवा छुपाया अथवा सबके भले के लिए असत्य भी बोला एवं बोलता भी हूं। इस कारण पत्नी रिश्तेदारों समाज फ्रेंड्स बेटी सबने मुझे कई बार कटघरे में भी खड़ा किया एवम नाराज भी होते रहे। अभी भी मेरे अनेकों परिचित मुझसे नाराज़ रहते हैं लेकिन सबकी भलाई के लिए छुपाना भी पड़ता है एवं सब ठीक है का झूठ तो प्रतिदिन मिलने पर फोन पर बोलना स्वभाव में आ गया है। पुस्तकों के उपदेशों से जीवन नहीं चलता कैलाश बेटे , बाबूजी की यह सीख याद आते ही मुझे कोई अफसोस आत्मग्लानि नहीं होती। इस फादर्स डे पर बाबूजी की सीख को जीवन की अंतिम सांस तक यथाशक्ति निभाने का संकल्प ले रहा हूं। यही बाबूजी को मेरी श्रद्धांजलि अर्पित है।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी