सपना – माँ, मुझे फ्लोरेंस नाइटिंगेल जैसी बनना है
( इस कथा में घटनायें और पात्र काल्पनिक हैं)
” बिक्रम मैं हॉस्पिटल जा रही हूँ, ” हरप्रीत ने सोये हुए अपने पति और बेटी की तरफ नज़र डालते हुए कहा। ” खाना बना हुआ है, खुद
खा लेना और रूपा को भी खिला देना , शाम को आऊँगी, ” कहकर हरप्रीत अपना टिफिन उठाये हॉस्पिटल की तरफ बढ़ गयी जहाँ वो पिछले 12 वर्षों से स्टाफ नर्स है।
हरप्रीत पंजाब के बठिंडा के पास एक गांव में एक किसान के घर पैदा हुई। माँ बाप की लाड़ली, हरप्रीत बचपन से पढाई में होशियार थी। गांव के सरकारी हाई स्कूल से उसने मेट्रिक परीक्षा में ज़िले में टॉप किया था। उसके माँ बाप उसकी शादी करना चाहते थे पर उसे तो आगे पढ़कर नर्स बनना था, गरीबों की सेवा करनी थी। बचपन से ही हरप्रीत फ्लोरेंस नाइटिंगेल, जिनको ‘दी लेडी विद दी लैंप ‘ (दीपक वाली महिला) और आधुनिक नर्सिंग आंदोलन की जन्मदाता भी कहते हैं, से प्रेरित थी। बड़ी मुश्किल से उसके माँ बाप माने। वो भी तब राज़ी हुए जब उसके साथ पढने वाली रजनी, जो पास के गांव में रहती थी और जिसके माँ बाप उसके पिता के दूर के रिश्ते में भाई लगते थे और जो उसी की तरह नर्स बनना चाहती थी।
हरप्रीत के माँ बाप को जब ये आश्वासन हुआ कि उसके साथ कोई अपना होगा तो वो उसके आगे पढाने के लिए तैयार हो गए। लुधिआना में कई नर्सिंग कॉलेज है और उन्ही में से एक कॉलेज में दोनों सहेलियों ने दाखिला ले लिया। वो हॉस्टल के एक ही कमरे मे रहने लगी। समय पंख लगाकर उड़ने लगा और एक दिन वो भी आया जब दोनों को बीएससी नर्सिंग की डिग्री मिल गयी।
दोनों सहेलियों को सरकारी नौकरी मिल गयी। हरप्रीत की नियुक्ति लुधिआना के जिला हॉस्पिटल में हुई, जबकि रजनी की पोस्टिंग रोपड़ के जिला हॉस्पिटल में हुई।
हरप्रीत अनुशासन प्रिय, दयालु स्वभाव और मेहनती थी। वोह अपनी मुस्कान से सब मरीज़ों का दिल जीत लेती थी। अपने काम में निपुण वो अपने उच्च अधिकारियों की विश्वासपात्र बन गयी। कुछ साल और बीते। हरप्रीत के लिए शादी के कई रिश्ते आये पर वो शादी नहीं करना चाहती थी। उसे तो बस अपना जीवन बीमार लोगों की सेवा में समर्पित करनी थी। पर माँ बाप के ज़ोर देने पर आखिर उसने शादी के लिए हां कर दी। उसकी शादी एक बैंक के अधिकारी बिक्रमजीत से हो गयी। शादी के दो साल बाद बेटी रूपा पैदा हुई।
पंजाब के हर ज़िले से एक नर्स को उत्कृष्ट सेवा के लिए अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के अफसर पर फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जब पंजाब के मुख्यमंत्री ने चंडीगढ़ में पंजाबी भवन में एक कार्यक्रम में उसे सर्टिफिकेट, मैडल और 21 हज़ार रुपये के नकद पुरस्कार से सम्मानित किया तो हाल तालियों से गूंज उठा और वो फूली न समायी।
उसने हाल में बैठे अपने पति और बेटी को देखा । कितने खुश थे वो दोनों । नन्हीं रूपा ने तो खड़े होकर जोश से जब पुकारा , “मम्मी…!” तो सब उसकी तरफ देखने लगे । मुख्यमंत्री ने पूछा , ” आपकी बेटी है ? उसे बुलाये स्टेज पर। ”
” बेटा बड़े होकर क्या बनोगे ? ”
शर्माते हुए जब रूपा ने कहा, ” मैं मम्मी की तरह नर्स बनूगी और फ्लोरेंस नाइटिंगेल की तरह रात को लैंप (दीपक) लेकर बीमारों की सेवा करुँगी।”
एक बार फिर हॉल तालियों से गूँज उठा। मुक्यमंत्री ने नन्ही रूपा की बात से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने नर्सों की बेटियों के लिए 51 हज़ार की स्कॉलरशिप की घोषणा कर दी।
अपनी बेटी को फ्लोरेंस नाइटिंगेल की राह पर चलने की प्रेरणा भी उसी ने दी। समय के साथ रूपा ने नर्सिंग का कोर्स पूरा कर लिया। उसको नर्स के सफ़ेद लिबास में देखकर उसका मन प्रफुलित हो गया। आज उसका सपना साकार हुआ। आँखों से ख़ुशी के दो बूँद आंसू गालों पर गिरते हैं जिन्हे वो रुमाल से साफ़ करती है।
— डॉक्टर अश्वनी कुमार मल्होत्रा