ग़ज़ल
देश मेरा खुशहाल रहे यह चाहत है
फूलों वाली डाल रहे यह चाहत है
सब धर्मों का साझा इक संगीत रहे
सादिक में सुरताल रहे यह चाहत है
अम्बर में जैसे चाँद सितारे ऐसे
प्यार रहे हर हाल रहे यह चाहत है
घर-घर सुख सहूलियत दे दाता
कुदरत बनकर ढाल रहे यह चाहत है
बंदा ही भगवान बने इंसान बने
दीन दुखी का ख्याल रहे यह चाहत है
सर्वोदय में सर्वप्रियता हो नर-नारी
सबकी अनुपम चाल रहे यह चाहत है
शुभआशीषें किलकारी हर्षोत्फुल्ल में
घर में नन्हें बाल रहे यह चाहत है
चूल्हे की अग्नि हर झोंपड़ में रोज जले
ना कोई कंगाल रहे यह चाहत है
‘बालम’ सब पिंजरों को खंडित कर दो
ना शिकारी ना जाल रहे यह चाहत है
— बलविन्दर ‘बालम’