धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

रमजान की इबादत का तोहफ़ा है ईद

भारत त्योहारों का देश है। यहाँ होली, दीवाली, क्रिसमस, बैसाखी, बिहू, पोंगल, ईस्टर,  ईद सभी त्योहार मिल जुल कर मनाये जाते हैं। सभी त्योहार अपने मे ख़ास होते है, इनके पीछे कुछ मान्यताएं होती है साथ ही ये आपस मे प्रेम, सद्भाव, भाईचारा, एक दूसरे का ख़्याल, परस्पर सम्मान और सम्बन्धों में नज़दीकियां लाते हैं। पिछले एक साल से कोई त्योहार अपनी ख़ूबसूरती नही बिखेर पा रहा। हम इसे मानव जीवन एवं प्रकृति के सह-सम्बन्धों की पुनर्व्याख्या का काल कह सकते हैं। कोरोना के जंजाल में उलझी दुनिया  त्योहारों में उदास पड़ी है। इसी काल मे अनेक त्योहार बस आये और चले गये। उदासी, हताशा, निराशा के माहौल में खुशियां कौन मनाये। बड़े तो बड़े बच्चों में भी त्योहारों का उत्साह कहीं दिखाई नह देता। बाजारों से रौनक गायब है। बात करते हैं इस्लाम पंथ के ख़ास त्योहार ईद की जो खुशियों और बरकतों का पर्व है। मोमिन के लिये तोहफ़ा है ईद  तो वहीं बच्चों के लिये ईदी है ईद। रमज़ान के एक महीने की इबादत और रोजों के बाद खुशियों की सौगात लेकर आती है ईद। जब बरकतों वाला रमज़ान का महीना ख़त्म होता है  जोकि इस्लामिक कैलेंडर में नवा और सबसे आखिरी पवित्र महीना माना गया है। इस महीने में लोग अल्लाह की इबादत करते हैं और बिना कुछ खाये-पिये रोज़े रखते हैं। रमज़ान के महीने में रोज़े रखने का मतलब होता है कि हमको भूख-प्यास का एहसास हो सके और ईद को मनाने का मक़सद कि पूरे महीने अल्लाह के बन्दे अल्लाह की इबादत करते हैं, रोज़े रखते है। और अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं। एक महीने की साधना सुफल मिलने का दिन ईद है। शव्वाल की पहली चाँद वाली रात ईद की रात होती है। इस चाँद को देखने के बाद ही ईदुल फितर का ऐलान किया जाता है।  पहली ईदुल फितर पैगंबर मुहम्मद साहब ने सन 624 ईसवी में जंगे बदर के बाद मनायी थी। ईदुल फितर का सबसे अहम मक़सद है गरीबों को फितरा देना ताकि जो ग़रीब मजबूर हैं वो भी अपनी ईद माना सकें और जो समृद्ध हैं अर्थात जिनके पास बावन तोला चाँदी या साढ़े सात तोला सोना है उन पर भी ज़कात वाजिब है। ईद  के दिन मस्जिदों में सुबह नमाज़ से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ होता है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दिन लोग अपने घरों में मीठे पकवान खास तौर पर सिवई बनाते हैं। बच्चों को ईदी के रूप में भेंट-उपहार मिलते हैं। बडे व्यक्ति अपने से छोटे को प्यार से ईदी देते हैं और बच्चे भी अधिकार से ईदी मांग लेते हैं। सभी अपनी से दोस्तो से रिश्तेदारों से गले लग कर आपस के गिले-शिकवे दूर करते हैं। इस्लाम मजहब का ये त्योहार भाईचारे का संदेश देता है। सबसे खुशी लोगो को नए कपड़े पहन कर नमाज़ अदा करने में होती है। गरीबों को ईद का फितरा दिया जाता है। सभी एक साथ मिलकर देश के अमन-चैन की दुआ करते हैं।एक दूसरे को उनकी पसंद के तोहफ़े भेट किये जाते हैं।
         हालांकि बीते साल की तरह इस साल भी संक्रमण को देखते हुए मस्जिदों में सीमित लोग ही जा सकेंगे। इस समय गले मिलना और कोई आयोजन भी सम्भव नहीं होगा। लॉक डाउन भी लगा है। नये कपड़े भी बनना मुश्किल हैं। अभी भी देश कोरोना के चपेट में ही है। इसी वजह से त्योहारों की चमक फ़ीकी ही रहेगी। ज़्यादातर लोग अपने घरों में नमाज़ें अदा करें और फोन या वाट्सअप पर ईद की मुबारकबाद दें। सरकार द्वारा दी गयी गाइड लाइंस का पालन करते हुए ईद मनायें। कोई बात नहीं कि हम बहुत खुलकर घरों से बाहर निकलकर उत्साह के साथ ईद नहीं मना सकेंगे पर खुशियां तो इत्र की तरह  होती हैं जो हवा में तैरते हुए बिखेरने लगती हैं। इस बार कपड़े नये नहीं पर ख़ास होंगे। ईद गले मिलकर नहीं पर मिलेंगे ज़रूर, ईदी हाथ मे नहीं पर मिलेगी ज़रूर, फासला रखना है दूरियाँ नहीं, दुआ करें कि कोरोना के साथ यह अपनी आखरी ईद हो। ईद का संदेश है कि इंसान अपनी इंसानियत के लिये काम करे। एक दूसरे के सुख-दुख में सहभागी बने। काम, क्रोध, हिंसा, लोभ, लालच का त्याग करे। ईद पड़ोसी के सुख में सुखी होने का भाव प्रकट करता है। सब मिलकर मानवता के लिए काम करने की प्रेरणा ग्रहण करते हैं जिससे एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके।
— आसिया फ़ारूक़ी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र