यह कैसी सामाजिकता ?
हम आत्मनिर्भर की
बात करते हैं,
तो पहले उन धर्मस्थलों से
दानपेटियों को हटाइये,
अन्यथा उस दानराशि से
भीख माँग रहे
भीखमंगे को
निर्भर बनाइये !
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हम मूरत के
‘राम’ जी की
पूजा करते हैं,
पर जो राम की
मूरत बनाते हैं,
उस कुम्हार
बंधुओं को
आर्थिक संबल
कबतक प्रदान करेंगे ?
….और हमारे पैरों को
सुरक्षा प्रदान करनेवाले
जूते निर्माता ‘चर्मकार’,
जिनके उपनाम ‘राम’ भी है,
उन्हें इज्जत देना हम
कब सीखेंगे ?
××××
सार्वजनिक वस्तुओं को
जो व्यक्ति
बाप का जागीर समझते हैं
और इसे चोरी-छिपे
हड़पने के मूड में रहते हैं,
उनसे अच्छा तो भीखमंगा है !
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जिस बहू को
ससुर की खाँसी से
नफरत है,
जो सास की निगरानी से
भागी फिरती है,
जो संयुक्त परिवार में
रहना नहीं चाहती
और जो पति को मउगा
उर्फ जोरू का गुलाम
बनाये रखती है,
ऐसी ही सावित्री को
प्रणाम कैसे करूँ ?