जातिवाद ‘कोविड 19’ से भी ज्यादा खतरनाक रोग है !
क्या महात्मा गाँधी ‘जैन’ धर्म से थे ? ….या वे सनातन धर्म से थे, जिसे कालांतर में हिन्दू कहते हैं ! देश में जातिवाद सबसे बड़ा कलंक है, क्योंकि अब भी भारतीय राजनीति जाति पर टिकी है, जाति जो नहीं जाती !
हम विकास की राजनीति करने को बैठते है, इसके बावजूद 2018 में ‘लिंगायत’ विधायक भी कर्नाटक के 52 घंटाई मुख्यमंत्री को इस्तीफ़ा से रोक नहीं पाए ! इस परिप्रेक्ष्य में क्रांतिकारी पत्रकार और कवि पंकज चौधरी की निम्नलिखित कविता तो जरा पढ़िए, जो कि जातिवाद पर करारा चोट है, यथा-
‘जाति पहला भाजपाई है
तो दूसरा बसपाई,
तीसरा कांग्रेसी है
तो चौथा मार्क्सवादी
पांचवां सपाई है
तो छठा लोजपाई
सातवां तेदेपाई है
तो आठवां शिवसेनाई
पहला प्रचारक है
तो दूसरा विचारक
तीसरा राजनेता है
तो चौथा अभिनेता
पांचवां समाजशास्त्री है
तो छठा अर्थशास्त्री
सातवां कविगुरु है
तो आठवां लवगुरु
एक राजस्थान का रहने वाला है
तो दूसरा पंजाब का
तीसरा कर्नाटक का रहने वाला है
तो चौथा बंगाल का
पांचवां यूपी का रहने वाला है
तो छठा बिहार का
सातवां दक्षिण का रहने वाला है
तो आठवां मध्य का
पहला सांवला है
तो दूसरा भूरा
तीसरा तांबई है
तो चौथा लाल
पांचवां कत्थई है
तो छठा गेहुंअन
सातवां नीला है
तो आठवां पीला
फिर भी इनमें कितना प्रेम है
इस प्रेम का कारण
कहीं इनकी जाति का
मेल तो नहीं है?
भारत का यह कैसा खेल है!’
इनसे परे हम ‘मानववाद’ के लिए जीये, तो इसके लिए हमें बाह्याडंबर और दकियानूसी विचारों पर कुठाराघात करने होंगे ! किसी भी धर्म के विहित विनम्रता जरूरी है, क्योंकि किसी भी धर्म की आस्था के लिए गुप्तता जरूरी है, दिखावा व पाखण्डपन नहीं ! हाँ, जाति में अक्खड़ता निहित है यानी जातिवाद स्वयं में भयंकर रोग है। वर्त्तमान को अगर हम केंद्रित करें, तो यह जातिवाद ‘कोविड 19’ से ज्यादा खतरनाक रोग है!
— डॉ. सदानंद पॉल