विद्रूप वाणी
एअब इसे क्या कहें?
अभिव्यक्ति की
आजादी के नाम पर
शब्दों का
खुला चीर हरण हो रहा है,
विरोध के नाम पर
शब्दों की मर्यादा का
हनन हो रहा है।
न खुद के बारे में सोचते हैं,
न ही सामने वाले के
पद प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हैं।
बस आरोप प्रत्यारोप में
अमर्यादित शब्दों का
जी भरकर प्रयोग करते हैं,
बस अधिकारों के नाम पर
सतही बोलों पर उतर आते हैं।
अगली पीढ़ियों को हम
शिक्षा,सभ्यता,विकास और
आधुनिकता के नाम पर
ये कौनसा, कैसा चरित्र
सिखाते, समझाते, दिखाते हैं?
हम अपनी विद्रूप वाणी से
ये कैसा उदाहरण देना रहे हैं।
अफसोस की बात तो यह है कि
न तो हम लजाते,शर्माते हैं
न ही तनिक भी पछताते हैं,
इस फेहरिस्त में हर रोज
नये नाम जुड़ते जाते हैं।