गीतिका
सीने में छुपी आग है , मालूम ये रहे !
आँधी मे वो चिराग है, मालूम ये रहे !
रस्ता तेरा कठिन है ये जंगल के बटोही!
हर ओर कोई नाग है ,मालूम है ये रहे ।
खुद को छुपा के रखता है,खादी में जो रहबर,
तन पे लहू का दाग है, मालूम ये रहे ।
विधवा सी परेशान है, हर ओर रियाया,
दिल्ली कहे सुहाग है ,मालूम ये रहे ।
वो रहनुमा है कह रहा सब ठीक ठाक है
हर ओर मृत्यु-राग है ,मालूम ये रहे ।
— डॉ. दिवाकर ‘गंजरहा’