कविता

कालाबाजारी

अब इसे क्या कहें?
कालाबाजारी या फिर
मर चुकी इंसानियत
या फिर विडंबना,
कुछ भी कहें पर
अत्यंत दुःखद है।
जब आज महामारी में भी
कुछ लोग इंसानियत को
तार तार करने में लगे हैं।
अफसोस तो यह है कि
तमाम पैसे ऊँची रसूल वाले भी
इस काले धंधे में लगे हैं।
कोरोना की दवाइयों, इंजेक्शन की
कालाबाजारी कर रहे हैं,
इसके लिए स्टाक तक को
गोलमोल कर रहे हैं,
पानी भर भर कर
इंजेक्शन से कोटापूर्ति का
इलाज कर रहे हैं,
जिनको बचाना था उन्हें
उन्हें खुद ही मार रहे हैं,
मुर्दों का भी इलाज कर
हजार क्या लाखों कमा रहे हैं।
आक्सीजन की कालाबाजारी कर
सौदेबाजी कर रहे हैं,
अस्पतालों में भर्ती कराने और
बेड दिलाने के नाम पर
सरेआम लूट रहे हैं।
बड़ा अफसोस होता है
कि बेबस परेशान लोगों की
भावनाओं से खेल रहे हैं,
महामारी के कारण जो पहले से ही
अधमरे से हो गए हैं,
उनके परिजनों की जान
बचाने की खातिर
उनका खून चूस रहे हैं।
इतना तक भी होता तो
शायद सह भी लेते लोग,
सफेदपोश भी इस गंगा में
डुबकी लगा रहे हैं।
जाने कितने लोग हैं जो
मौके को अच्छे से भुना रहे हैं,
इस कोरोना महामारी को
कमाई का जरिया बना रहे हैं,
बड़ी बेशर्मी से अपनी अपनी
जेबें खूब भर रहे हैं।
जिनके लोग मर गये हैं
उनके भी जज्बातों से खेल रहे हैं,
घर पहुँचाने के लिए भी
बोलियां लगा रहे हैं,
छोटी मोटी कालाबाजारियाँ कर
जो लोग जी भर पा रहे हैं,
वही लोग ज्यादा बदनाम हो रहे हैं,
मौके बे मौके बस
वही सजा भी पा रहे हैं।
संभ्रांत,बड़े लोग,रसूखदार
स्वच्छंद खुलेआम घूम रहे हैं,
कालाबाजारी के नित नये
देखिए!कीर्तिमान गढ़ रहे हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

One thought on “कालाबाजारी

  • चंचल जैन

    आदरणीय सुधीर जी,सादर नमन।आप ने कडवे यथार्थ को बखूबी सादर किया हैं।कालाबाजारी करते मानव नहीं दानव हैं।इंसनियतपर कालिख पोत रहे हैं।सादर

Comments are closed.