पंथनिरपेक्षता
कोई भी व्यक्ति,
जो मानव होने का
दावा करता है,
वह धर्मनिरपेक्ष
हो ही नहीं सकता है,
किन्तु वह पंथनिरपेक्ष
हो सकता है !
नामवर सिंह जी
और सुधीश पचौरी जी के द्वारा
लिखा मैंने आजतक
समझ नहीं पाया हूँ,
पर आपने ?
अपनी ‘कार’ त्यागकर,
बसों या ट्रेनों में सफर करें,
तो किसानों को
‘तेल’ मुफ्त में प्राप्त होंगे।
तभी ‘सरकार’ बरकरार
और बेकरार रहेगी !
एक व्यक्ति माट’सा कह
शब्दों को बिगाड़
दबंगीयत का
परिचय देता है !
तभी तो बचपन में
मैं उसे ‘नेटा’ ही
कह पाता था
यानी ‘नाक’ का ‘घी’ !
संविधान में
‘सेक्यूलर’ शब्द का
उल्लेख है,
जिनका अधिकृत हिंदी अर्थ
पंथनिरपेक्ष है।
‘पंथ’ का अर्थ
सम्प्रदाय से है,
जो धर्म नहीं है !
मेरे शिक्षक व शिक्षिका मित्र,
जिसने मेरी किताब
रुपये देकर नहीं खरीदे,
अपितु उसे उपहारस्वरूप मिली,
बावजूद वे इसे पढ़ नहीं पाए हैं !