कविता

जिंदगी क्या है?

मान लीजिए
जिंदगी ,गीत,मीत,संगीत है,
सलीका समझ में आ जाये तो
सबसे बड़ी प्रीत है।
बस ! जिंदगी को
जीने का अपना अपना
हरेक का तरीका है,
कोई हंसकर जी रहा है
कोई रोकर जी रहा है,
बस ! मानसिकता का फर्क है
कोई बहुत सुख सुविधा के बाद भी
जिंदगी को बस ढो रहा है,
कोई अभावों में भी
जीवन के लुत्फ उठा रहा है।
कोई किस्मत को दोष
दे देकर सुलग रहा है,
तो कोई ईश्वर का धन्यवाद कर
मस्ती में जी रहा है।
बस सिर्फ़ नजरिए का फर्क भर है
किसी को बोझ लग रहा है,
तो कोई सुकून से नाच गाकर
जिंदगी के गीत गा रहा है।
जिंदगी क्या है?
मायने नहीं रखता,
जिंदगी के प्रति
हमारा नजरिया क्या है?
फ़र्क इससे पड़ता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921