कविता

मृत्यु

मृत्यु क्षण-क्षण घूम रही
दिखाकर ख़ौफ़
न जाने क्यों ?
इस धरा को चूम रही।
न जात देख रही है
न धर्म देख रही है,
बस हर किसी को
अपनी क्रूर नज़रों से
चूर कर रही है।
किसी बिगड़े हुए
आशिक की तरह,
न किसी की सुनती है
न किसी की मानती हैं।
अपनी ही निगाहों से
अपनी ही मर्जी से
हर किसी को घूर रही हैं।

— राजीव डोगरा ‘विमल’

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233