समाधान
सोमदत्त।छरहरा सा सांवला लड़का।पापा मंदिर में साफसफाई का काम करते थे।मम्मी आसपास जो भी काम मिलता कर लेती।बड़े भैया कूरियर कंपनी में थे।ईमानदार और खुद्दार।मेहनतकश।आलस जैसे पता ही ना था।घर का हर सदस्य एक दूसरे का ध्यान रखता। बहुत ही स्नेहिल परिवार।सोमदत्त को खूब पढाना चाहते थे माता पिता।बड़े भैया भी।बड़े बड़े सपने पाल रखे थे सब ने।लेकिन 10 कक्षा का छात्र सोमदत्त की गाड़ी गणित में बार बार अटक जाती।अंकों का जाल डरावना लगता।दो बार गणित में फेल होने के बाद वह अब कामधंधा या अपना छोटा बड़ा व्यवसाय करने का सोच रहा था।जैसेही अन्नू भाभी को पता चला,उन्होंने काम के बहाने अपने घर बुला लिया।समझा बुझाकर पढ़ने के लिए राजी किया।अब समस्या मराठी मीडियम में गणित पढ़ाने की थी।चूंकि प्रशाला में हमारा मराठी मीडियम था,सोमदत्त मेरे पास आया।”ताई,मी तुम्हाला ताई म्हणू का?”उसका भोलापन,अल्हड़पन,मासूम चेहरा मुझे भा गया।न जाने क्यों गरीबी की लड़ाई लड़ते इन बहादुरों से मुझे लगाव कुछ खास होता हैं।मैंने देखा वह बहुत सारी किताबें खोलकर बैठ गया था।इधर उधर तांक झांक कर रहा था।ऊलजलूल सवाल।बेतुके सवाल।’बोलो सोमदत्त,तुम्हे गणित की किस अध्याय में रुचि हैं?”बाकी सारी किताबें बाजू में रख कर मैंने स्कूल की नियमित किताब खोली।जो उसे आता था उसकी पुनरावृत्ति कर हम कछुआ चाल से पढ़ने लगे।शायद अब कुछ सहज होने लगा था वह।उसे पढ़ाई में आनंद आने लगा।मेरा पढ़ाया वह ध्यान से मनन करने लगा।धीरे धीरे रुचि बढ़ रही थी उसकी।एक दिन पूछने लगा,”माझ्या मित्राला यायचे आहे तुमच्या कड़े”क्या मैं मेरे मित्र को भी लेकेर आऊँ पढ़ने के लिए””ना बाबा ना।नही लाना किसी को।”मेरे ना कहने पर मुंह छोटा कर बैठा।”आप टीचर क्यों नहीं बनती?आप अच्छा सिखाती हो।आप समझाती हो वैसे कोई नही समझाता।गणित जैसा विषय भी मुझे अब सरल लग रहा हैं।मैंने मज़ाक भरे लहजे में पूछा,”टीचर को क्या मिलता हैं?ना प्यार,ना सम्मान।”वह तपाक से बोला ,”समाधान”।सच एक शिक्षक को विद्यादान देकर जो समाधान मिलता हैं,सुकून मिलता हैं क्या और कहीं मिल सकता हैं?सोमदत्त जैसे कई विद्यार्थी हैं जो पढ़ना चाहते हैं,पर पढ़ नही पाते।पैसों के साथ अच्छे शिक्षक से मुलाकात न होना उनकी बदनसीबी हैं।सोमदत्त पास हो गया।अच्छी नौकरी भी मिल गई।लेकिन सोमदत्त जैसे और कई हैं,उनके भविष्य की चिंता कौन करेगा?
— चंचल जैन