दो कविताएं
अँधेरी रात में भी भोर की आस रखना तुम |
अँधेरा नित नहीं रहता यही विशवास रखना तुम ||
घृणा की तेज आंधी में कभी न राह भटक जाना |
जलाना प्रेम के दीपक मन में उजास रखना तुम ||
मन में हौसले रखना बड़े सपनों को पाने के |
अपनी उड़ान में ऊँचा सदा आकाश रखना तुम ||
अंधेरों में अमूमन लोग राहें भटक जाते हैं |
किसी मुर्शिद के शब्दों का भीतर प्रकाश रखना तुम ||
संघर्षों ने जमाने को ख़ुशी के गीत बांटे हैं |
गति क़दमों में रखना और सदा विकास रखना तुम ||
नाटक बोझिल न होगा यार तुमको सच सुनाता हूँ |
किरदार में थोड़ा सा ही बेशक परिहास रखना तुम ||
खिजां के मौसमों में भी दर्द कभी उदास न होना |
चाहतों में हमेशा अपनी इक मधुमास रखना तुम ||
अशोक दर्द
कभी एहसास को अपने ….
कभी एहसास को अपने कभी जज्बात को अपने |
लिखा करना मेरे दिल तू कभी ख्यालात को अपने ||
महफ़िल में बेशक रहना मगर खुद से भी मिल लेना |
खुदी से पूछ लेना फिर सभी सवालात को अपने ||
लेकर स्वेद की बूँदें बनाना पंख सपनों के |
बदलना गर तू चाहता है कठिन हालात को अपने ||
अगर मन हार जाये तो समझना जीत मुश्किल है |
कभी दिल में न देना तुम जगह डर – मात को अपने ||
बमों के दौर में मुझको लगे ऐसा मेरे यारो |
कहीं खुद ही न कर दे खत्म मानव ज़ात को अपने |
गुजरा है उसी का दिन उसी की सांझ खुशियों में |
किया जिसने नहीं बर्बाद कभी प्रभात को अपने ||
दुआओं में हमेशा माँगना जग के लिए खुशियाँ |
सकूं से भरना चाहो तुम अगर दिन – रात को अपने ||
अशोक दर्द