सामाजिक

बहन तो बहन है

रिश्तों में संवेदनाओं का बड़ा महत्व है।उस पर बहन भाई का रिश्ता संभवतः संवेदनाओं की पराकाष्ठा का सुंदर उदाहरण है। जरूरी नहीं रिश्ते खून के ही हों ,भावनाओं से जुड़े रिश्ते भी उन पराकाष्ठाओं की ऊँचाइयों को छूते ही नहीं उससे ऊपर तक पहुंचते भी हैं।
यही नहीं ये भी जरूरी नहीं है कि साकार भेंट ही भाई बहन के रिश्तों की अहमियत बढ़ाते हैं। बहुत बार अनदेखे अनजाने आभासी दुनियां से जुड़े भाई बहन के रिश्ते भी उन सारी भावनाओं, व्यवहार, नोक झोंक, लड़ाई, झगड़े, रूठना ,मनाना और रिश्तों की महत्ता की खातिर एक दूसरे के हितों के लिए अड़ जाना, जिद करके मनवा लेना भी होता है। इस मामले में सामान्यतया बहनों का पलड़ा हमेशा भारी होता है।जैसा कि खून के रिश्तों में भाई बहनों के मध्य होता है,कुछ वैसा ही आभासी रिश्तों में भी दिख जाता है।बहनें हमेशा भाइयों से जिद या धमकी से अपनी बात मनवा ही लेती हैं। दूर हों या पास भाई के साथ कब किस तरह पेश आना है,कब उनके साथ खड़े होना और कब विरोध में,ये बहनों से बेहतर कोई नहीं जानता।बहन छोटी हो या बड़ी उसके भाई का उससे बड़ा शुभचिंतक कोई नहीं हो सकता।ऐसा आभासी रिश्तों में भी होता है।ऐसे ऐसे आदेश निर्देश कि जैसे न मानने पर अभी फोन के रास्ते ही सिर पर सवार हो जायेगी। तीज त्योहार की परंपरा का निर्वहन भी आभासी रिश्तों में भी देखा जा सकता है।
रिश्तों की इन्हीं मान्यताओं के चलते बहुत बार आभासी भाई या बहन एक दूसरे की खुशी अथवा भविष्य के लिए ऐसा भी कदम उठा लेते हैं, जो सामान्यतया सगे बहन या भाई हिचकिचाते हुए पीछे हट जाते हैं।यही नहीं कई बार तो उस बहन के लिए अपने को दाँव पर लगाने में भी नहीं हिचकते,जिसे उन्होंने अभी देखा तक नहीं होता।
संक्षेप में यही कहना ठीक है कि बहन के रिश्ते की पराकाष्ठाओं को कोई अन्य रिश्ता छू भी नहीं सकता। क्योंकि बहन छोटी हो या बड़ी,अपने भाई के लिए उसके भाव हमेशा मातृत्व भाव लिए होते हैं तो भाई के लिए उसकी बहन उसके प्राण सरीखा अहमियत रखती है।
इसलिए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि बहन तो बहन है उसकी जगह और कोई रिश्ता ले ही नहीं सकता।

*सुधीर श्रीवास्तव

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