रुख़सत।
जो हो गए यूं रुख़सत उनकी कमी बाकी है,
बदल गया थोड़ा आसमां पर ज़मीं बाकी है।
उनका यूं वक़्त से पहले ऐसे चले जाना भी,
होंठों पे है मुस्कान आंखों में नमी बाकी है।
मुकद्दर से मिलते हैं रिश्ते कुछ खास कहीं,
होते हैं संग अपने तो यादों की गुदगुदी बाकी है।
वक़्त से पहले अजीज़ अपने रुख़सत हो जाएं,
फिर मरहम भी मिले तो अश्कों की लड़ी बाकी है।
ज़िन्दगी तो चलती रहती है बिछड़ने के बाद भी,
बदल जाती है बहुत बातें पर कुछ कमी बाकी है।