गीतिका/ग़ज़ल

वतन की शान देखो।

वतन की शान देखो जब बढ़ने लगी थी,
सिर्फ निंदा आतंक पे न रहने लगी थी।

लहु देख शहीदों का आंख उठने लगी थी,
वतन की गरिमा अब महत्व पाने लगी थी।

क्यों स्वार्थ में लिप्त विरोधी सब एक हो गए,
राह सिंह की बेइमानी से रोके जाने लगी थी।

टूलकिट का खेल रचकर छोड़ा न मुर्दों को भी ,
लाशों पे अस्मत वतन की कुर्बान होने लगी थी।

समझ में आ रहा था खेला मां भारती को भी,
देशद्रोह देख वतन से आंखें नम होने लगी थी।

मां भारती भी ये देख कहने लगी हर वीर से,
बुझा दो चिंगारी वो आग जिससे लगने लगी थी।

जय हिन्द !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |