झूठी हों गर दुआएँ
झूठी हों गर दुआएँ
झूठी हो गर दुआएँ तो फलतीं नहीं ,
पानी खारा हो तो दाल गलती नहीं |
तिल्लियाँ लाख माचिस की रगड़ो मगर,
हो नमी गर फिजाओं में जलती नहीं।
आह निकले भी तो कैसे किस जख्म पर,
दिल में जख्मों का जब कोई गिनती नहीं |
जल रहीं बस्तियाँ उठ रहा है धुआँ,
रुख हवाओं की फिर भी बदलती नहीं |
रूह भी सहमी – सहमी सी दुबकी हैं अब ,
मारे डर के कहीं भी भटकती नहीं |
लिख देती किरण मन की कुछ – कुछ यूँ ही ,
बातें दिल की छुपाने से छुपती नहीं |