फिर भी भारत महान जी !
साहित्यिक-सहवास
मन की उद्वेलिता को
खत्म करता है,
किन्तु
शारीरिक-सहवास
तन की उद्वेलिता को
बढ़ाता है !
अली बाबा
और चालीस चोर !
आज हर पार्टी
और कुनबे में सिर्फ
‘अली बाबा’ बदले हैं,
तो उनके गिरहकट
चालीस मेंबर
चोर के चोर ही हैं,
लेकिन इकतालीस में
किसी के व्यवहार
नहीं बदले हैं,
सिर्फ मन्त्र
बदल गए हैं !
अब ‘खुल जा
सिम-सिम’ से
दरवाजे नहीं खुलते !
इस पीड़ादायी बारिश,
फिर बाढ़ आपदा पर
पीड़ितों की
सेवा के लिए
अघोषित कमाई
करनेवाले
‘वकीलों’ को
बढ़-चढ़कर
हिस्सा लेने चाहिए !
सौ में अस्सी
बेईमान ‘जी’ यहाँ,
फिर भी भारत
महान जी हाँ !