गज़ल
बात अपनी बादशाहों वाली रही
चाहे ता – उम्र पायमाली रही
रास आए न हमको जहां के चलन
अपनी फितरत ही सबसे निराली रही
चिराग कितने जला कर देखे मगर
हिज्र की रात काली थी, काली रही
बाद तेरे बसा न नज़र में कोई
दिल की बस्ती खाली की खाली रही
संग तेरे गए रँग और रोशनी
फीकी अपनी होली दिवाली रही
अच्छे-अच्छों के नाम-ओ-निशां मिट गए
कायम किसकी जाहो-जलाली रही
— भरत मल्होत्रा
आँसुओं की जहाँ पायेमाली रही
वो बस्ती चिरागों से खाली रही