संस्मरण

सच्चा मित्र है बरगद का वृक्ष- संस्मरण

सुबह तैयार होकर बी०आर०डी० मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में अपनी साइकिल से ड्यूटी जा रहा था | उसी समय माता जी का कॉल आया, मां बोली बेटा जो अपने आंगन में बरसों पुराना बरगद का पेड़ लगा हुआ है | उसे परिवार के बंटवारे के कारण काटने को कह रहे हैं | बेटा तू कुछ कर वह भी तो तेरा भाई जैसा है | मां की बात सुनकर मैं बहुत दुःखी हुआ | आंगन में लगे बरगद के वृक्ष के साथ बचपन की यादें तुरंत ताजा ही गईं | वह पेड़ मेरे जन्म से पहले का है, यह बात अलग है, बचपन के समय वह इतना बड़ा नहीं था | आज बहुत विशाल हो गया है | उस पर हम सभी भाई बन्दर की तरह कूदते-फानते थे | साथ ही उसके मीठे-मीठे गूलर बहुत खाएं हैं | बरगद के पत्तों से बचपन के खेलों में दावत के लिए दोने-पत्तल भी बनाया करते थे | पूरे गांव के बच्चे बरगद के नीचे आकर खेलते थे |
आज भी गर्मियों के दिनों में गांव के बड़े-बूढ़े ठंडी हवा का आनंद लेने के लिए आंगन में बैठने आ जाते हैं, फिर बैठकर सभी लोग पुरानी कहानियां सुनते हैं | बचपन के खेलों में हुरुक-डंडा,छिपी-छिपा आस-पास आदि खेल खेलते थे | यह सब बातें याद करके मैं हृदय से रोने लगा | कार्यालय में अपने सर से बात करके बताया कि मां जी का कॉल आया है | घर में कुछ बहुत जरूरी काम है | सर ने कहा ठीक है, ध्यान से जाना घर पहुंचकर हाल-चाल बताना | बस स्टैंड पहुंचकर रोडवेज से ही घर के  लिए निकल पड़ा |  अगले सुबह चार बजे घर पहुंच गया | मां ने बताया कि ताऊ जी के हिस्से में वह जगह आ गई है | जिसमें वह बरगद का वृक्ष है, अब वह लोग उसे काटने की बात कह रहे हैं | तुझे तो पता ही है, बरगद के पेड़ के बिना इस आंगन में रुकना एक क्षण भी मुश्किल होगा |अब तुझे ही कुछ करना होगा | मां को मैंने विश्वास दिलाया ! आप चिंता ना करें | मैं कुछ ना कुछ उपाय जरूर निकाल लूंगा |
तुरंत ही मैं ताऊ जी के घर पहुंचा, पैर छूकर प्रणाम किया और उनकी कुशल मंगल के बारे में पूछा | उन्होंने कहा सब ठीक है | तू बता कैसा है, अभी दो दिन पहले ही ड्यूटी गया था | अचानक फिर क्यों? मैंने ताऊ जी को बताया माता जी का फोन गया था, कि बरगद के पेड़  लिए कुछ दिक्कत आ रही है | ताऊ जी ने बोला हां वह जमीन हमारे हिस्से में आ रही है , लकड़हारों को बरगद के पेड़ को काटने के लिए बोल दिया है | मैंने ताऊ जी से कहा आप इस पेड़ को ना काटे, इसके बिना फिर हम सब लोगों को ठंडी हवा, छाया कहां से मिलेगी ?  किसी तरह बात बनी ताऊ जी ने 40 हजार रूपए में 10 फुट जगह देने को तैयार हो गए | मैंने घर से लाकर ताऊ को पैसे दे दिए और उन्होंने कहा, मैं अब कुछ नहीं कहूंगा, ये जगह अब तुम्हारी हुई |
घर जाकर सब बात मैंने माता जी को बताई, मां की आंखों में खुशी के आंसू छलकने लगे | हमें विश्वास था कि तू कुछ ना कुछ उपाय जरूर निकालेगा | आज तूने मेरे एक और बेटे की जिंदगी बचाई है | मैं तुझसे बहुत खुश हूं | मैंने कहा मां ये मेरा कर्तव्य है | भले ही वह बरगद का वृक्ष है, अपने आंगन में रहता है, तो मेरे भाई जैसा हुआ | बचपन के समय आस-पास बहुत से पेड़ पौधे थे | तथा बहुत सारे बचपन के दोस्त थे | आज जनसंख्या वृद्धि के कारण एवं गांव में शहरीकरण करने के लिए लोगों ने पेड़ों की कटाई करना सही समझा  | लेकिन बहुत बुरा परिणाम हुआ | आज लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं  | जब भी मैं घर जाता हूं, मेरे बचपन के कुछ दोस्त बेरोजगारी के चलते शहर की ओर पलायन कर गए हैं | कुछ दोस्त धनवान होने के घमंड में सीधे मुंह बात नहीं करते है | सब लोग अपनी अपनी दुनिया में मस्त हैं |
लेकिन मेरा सच्चा मित्र बरगद का वृक्ष है | वह मेरे जन्म से पहले का है | मेरे लिए हमेशा अपनी शाखाओं के रूप में अपनी बांहें फैलाए हुए मिलता है | मुझसे कहता है कि पता नहीं तू कहां चला जाता है | मैं तेरे बिना अकेला रह जाता हूं | मेरे पास आजा, बहुत थक गया होगा | आ तेरे चेहरे की सभी टेंशन हो छूमंतर कर दूंगा |  वास्तविक में मुझे उसके पास आकर बहुत खुशी मिलती है और बचपन की पुरानी यादों में खो हो जाता हूं | आप सभी से अनुरोध करता हूं, कि अगर आप के आस-पास कोई भी हरे-भरे , पेड़-पौधो को काट रहा हो तो उसे समझाने का प्रयत्न करें | ज्यादा से ज्यादा लोगों को वृक्षारोपण के प्रति जागरूक करें, क्योंकि हमारे आस-पास का वातावरण शुद्ध रहेगा? तो हमारा पर्यावरण हमेशा संतुलित बना रहेगा | आज से मैं प्रण लेता हूं कि प्रत्येक वर्ष कम से कम 5 पौधे अवश्य लगाऊंगा |
आखिर पर्यावरण बचाना जरूरी है………………
अवधेश कुमार निषाद मझवार

अवधेश कुमार निषाद मझवार

ग्राम पूठपुरा पोस्ट उझावली फतेहाबाद आगरा(उत्तर प्रदेश) M-.8057338804