गीत/नवगीत

पापों की तू रचना काली

बाहर से ही नहीं, सखी तू, अन्दर से भी काली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।

छल-कपट, षड्यंत्र की देवी।
तू है, केवल धन की सेवी।
प्रेम का तू व्यापार है करती,
प्रेम नाम, प्राणों की लेवी।
धोखा देकर, जाल में फांसे, यमराज की साली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।

धन से खुश ना रह पायेगी।
लूट भले ले, पछताएगी।
नारी नहीं, नारीत्व नहीं है,
पत्नी कैसे बन पाएगी?
पत्नी प्रेम की पुतली होती, तू तो जहर की प्याली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।

साथ में सबके, कहे अकेली।
कपट के खेल कितने है खेली?
शाप किसी का नहीं लग सकता,
कैसे होगी? कालिमा मैली।
विश्वासघात कर, पत्नी कहती, लगे जंग की लाली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।

दुष्टता से, तू चाहे जीतना।
लूट रही तू, हमें रीतना।
दुरुपयोग कानूनों का करके,
कभी मिलेगा, तुझे मीत ना।
मोती सा फल चाह रही है, बंजर है, सूखी डाली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)