सामाजिक

प्राइवेट अस्पतालों में कमाई का साधन बना कोरोना

निजीकरण को बढ़ावा देती सरकारी नीतियां का यह परिणाम है कि प्राइवेट अस्पतालों में कमाई का साधन बना कोरोना ।ऑक्सीजन- वेंटीलेटर के बीच अस्पतालों का सच- झूठ आम जनता की समझ से बाहर है। कोरोना महामारी से देश पिछले 15 महीने से जूझ रहा है एक तरफ  चरमराई अर्थव्यवस्था दूसरी तरफ आर्थिक तंगी से देश का जन-जन भी मानसिक और आर्थिक त्रासदी से गुजर रहा है । कोई वर्ग ऐसा नहीं है जिस पर कोरोना महामारी का असर ना हुआ हो और सबसे बुरा हाल है मध्यवर्गीय परिवारों का।
 जिन में ज्यादातर परिवार ऐसे हैं जो कोरोना के चलते प्राइवेट नौकरी से तो हाथ धो ही बैठे हैं ,धन के अभाव में कोई व्यवसाय भी नहीं कर पाते ।जमा पूंजी घर की किस्तों , बिजली-पानी ,स्कूल की फीस में जा रहे हैं ऊपर से इन परिवारों में अगर कोई दुर्भाग्य से कोई कोरोना से संक्रमित हो जाता है तो इलाज के नाम पर सरकारी अस्पतालों में जाए तो आप राम भरोसे ही हैं ।आइसोलेट वार्ड में आपको एडमिट कर के डॉक्टर ही आप से ही आइसोलेट हो जाएंगे ।
    दूसरी तरफ मरीज बीमारी और अवसाद के चलते जिस मानसिक पीड़ा  से गुजरता है वह अलग। प्राइवेट अस्पतालों की स्थिति और भी दुखदाई भयंकर परिणाम वाली है।जो मरीज को बीमारी से कम और आमदनी के साधन के रूप में ज्यादा आंकते हैं। बस किसी भी बीमारी से ग्रसित होकर आए आपकी रिपोर्ट तो कोरोना पॉजिटिव ही आएगी ।
कोरोना के चलते एक नया रुझान शुरू हो गया है । प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना जांच के नाम पर हजारों के टेस्ट करा कर पैसे वसूल किए जाते हैं । एक खेल शुरू हो गया है पैसे कमाने का। मानवता को और दयनीय स्थिति में भेजने का ।
     कोरोना समाज में ऐसी मानसिकता को जन्म दे रहा है कि लोग पैसे के लिए इंजेक्शन, दवाई और ऑक्सीजन  सिलेंडर तक ब्लैक कर रहे हैं ।पैसे देकर कहीं भी आने- जाने की सहूलियत के लिए लोग कोरोना नेगेटिव की रिपोर्ट देते हैं। सबसे बुरा प्रभाव उन लोगों पर पड़ा है, जो मानसिक रूप से कमजोर  हैं और कोरोना का डर इतना हावी हो गया है कि कोरोना हो गया तो…. क्या हो जाएगा।लोगों का यह डर कई बार इतना हावी हो जाता है कि वह अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं ।
    एक बार आप प्राइवेट अस्पताल के चंगुल में फंस गए तो आपकी जमा राशि के अलावा आपको कर्ज में डूबा कर ही छोड़ेंगे और 15 दिन से 1 महीने तक बीमारी को बढ़ा- चढ़ाकर आप को वेंटिलेटर से मृत्यु द्वार तक छोड़कर आएंगे । कोरोना काल में लाखों के बिल जिसमें हजारों रुपए की दवाइयों के बिल रेमेडिसिवर इंजेक्शन की ब्लैक और 30000 से 75000 तक के इंजेक्शन आम आदमी को मौत से पहले ही मार देता है।जिंदगी छटपटा रही होती हैऔर परिवार और मरीज दोनों को एक -दूसरे से मिलने नहीं दिया जाता।
        आईसीयू /वेंटीलेटर का खर्चा प्रतिदिन 12000 से ₹18000 नकद 25000 से 40000 तक का खर्चा मरीज और उसके परिवार को तो मानसिक और आर्थिक परेशानी से गुजारता ही है समाज में एक दहशत का माहौल पैदा करता है। ऊपर से डॉक्टर और नर्सों  की झूठ को सच करती प्रतिदिन की रिपोर्ट कि आपका पेशेंट रिकवरी कर रहा है और कुछ ही दिन में डिस्चार्ज कर दिया जाएगा ।फिर उसके बाद तबीयत क्रिटिकल हो गईऔर इंजेक्शन लगेंगे ,इंतजाम करें उनके परिवार वाले ऐसी ही बातों से हर रोज गुजरते हैं फिर से वेंटिलेटर और फिर ऑब्जरवेशन  चलता है ।
अस्पताल वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि पेशेंट के परिवार वाले हर दिन कैसे मर-मर  कर कर्ज लेकर  बिल दे रहे हैं। 15 दिन 1 महीने के बाद जब तक मरीज के परिवार  वाले रकम देने में असमर्थ होते हैं तो कुछ ही घंटों में यह रिपोर्ट दे दी जाती है कि आपके पेशेंट की हालत और बिगड़ गई। इंफेक्शन फैल गया।हम बचा नहीं सके ।बल्कि वेंटीलेटर से सीधे मरने के बाद ही उतारते है।कई मरीजों को तो मौत के बाद भी बिल बनाने के लिए वेंटीलेटर पर रखा जाता है और मृत्यु के बाद लाखों का बिल चुकाए बिना पेशेंट के परिवार वालों को  बॉडी देने के लिए भी बखेड़ा खड़ा कर देते हैं ।
      प्राइवेट अस्पतालों में, मरीज से कितनी आमदनी हो रही है हर महीने की टर्नओवर और पैकेज को देखती है।   कोरोना काल में दवाई इंडस्ट्रीज और डॉक्टर जिन्हें लोग भगवान मानते थे आमदनी और पैसे के लालच में लोग किस प्रकार जिंदगीयों का सौदा कर रहे है और मौत को बेच रहे है । सरकारों के निजीकरण का परिणाम भुगत रही है गरीब जनता। उठा रहे हैं निजी कंपनियां जिन्होंने कोरोना को एक लाभकारी व्यवसाय बना दिया है।
— प्रीति शर्मा “असीम”

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- [email protected]