सिक्किम के नेपाली समुदाय की जीवन शैली
सिक्किम में लेपचा और भूटिया समुदाय के बाद नेपाली लोगों का आगमन हुआ। अंग्रेजों के आगमन के बाद उन्नीसवी शताब्दी में नेपाली समुदाय के लोग सिक्किम में आए। वे खेती– किसानी करने के लिए यहाँ आए थे, परंतु धीरे– धीरे उन्होंने भूटिया और लेपचा समुदाय की भूमि पट्टे पर ले ली और उस पर खेती करने लगे। दार्जिलिंग के निकट अंग्रेजों के चाय बागानों में काम करने के लिए भी नेपाली लोगों को बुलाया गया था। वे खेती करने का तरीका जानते थे। इन्होने सिक्किम में सीढ़ीनुमा खेती की शुरुआत की। नेपाली लोग मेहनती और मितव्ययी होते हैं। अपने कठोर परिश्रम और लगन के बल पर नेपाली समुदाय ने कुछ ही समय में समृद्धि प्राप्त कर ली। अपने अध्यवसाय से इन लोगों ने सिक्किम में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। जिस पट्टे की जमीन पर इन लोगों ने खेती शुरू की थी उस जमीन को खरीदकर उसके मालिक बन गए। वर्तमान में यहाँ कुल आबादी में 70% जनसंख्या नेपाली समुदाय की है। इस समुदाय के लोगों द्वारा राज्य में इलायची की खेती की शुरुआत की गई थी। नेपाली लेपचा की तरह एक सजातीय समूह नहीं है। यह भिन्न- भिन्न और विशिष्ट जनजातियों व समुदायों का एक समूह है जिन्हें मोटे तौर पर दो बुनियादी समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है- मंगोलियन और आर्य। सिक्किम में लिंबू को भी नेपाली कहा जाता है, लेकिन वे लोग स्वयं को नेपाली नहीं मानते हैं। इसी तरह शेरपा को संवैधानिक रूप से भूटिया समूह के अंतर्गत रखा गया है, लेकिन वे खुद को नेपाली मानते हैं। केवल नेपाली भाषा बोलने के आधार पर किसी को नेपाली नहीं कहा जा सकता है। भूटिया, लेपचा या मारवाड़ी लोग नेपाली के अलावा कोई भी भाषा नहीं जानते हैं, फिर भी उन्हें नेपाली नहीं माना जाता है, लेकिन लिंबू, राई या गुरुंग समुदाय के लोग नेपाली नहीं बोलकर अपनी भाषा बोलते हैं, फिर भी अन्य लोगों के लिए वे नेपाली हैं । अतः नेपाली पहचान न केवल भाषाई है, बल्कि नस्लीय और ऐतिहासिक है। नेपाली एक छतरीनुमा शब्द है जिसके अंतर्गत अनेक जनजातियों और समुदायों को प्रतिनिधित्व मिलता है। नेपाली में निम्नलिखित समूहों को शामिल किया गया है – बाहुन (ब्राह्मण), ठकुरी, छेत्री, नेवार, राई, गुरुंग, तमांग, लिंबू, मंगर, जोगी, भुजेल, थामी, योलमो, शेरपा, देवान, मुखिया, सुनार, सरकी, कामी, दमाई । बाहुन, छेत्री, ठकुरी, कामी, सरकी और दमाई को छोडकर शेष समुदाय की अपनी भाषा, परंपरा, संस्कृति, नायक और आदतें हैं । बाहुन, छेत्री आदि नेपाली भाषा बोलते हैं जो नागरी लिपि में लिखी जाती है जबकि मंगोल प्रजाति समूह के ज्यादातर लोग द्विभाषी हैं । वे नेपाली भाषा के अलावा अपनी भाषा भी बोलते हैं । श्री ए.सी.सिन्हा के अनुसार “सिक्किम में नेपाली समुदाय की तीन मुख्य उप-सांस्कृतिक प्रजाति हैं जिनके नाम हैं -किराती, नेवारी और गोरखा। किराती में लिंबू, राई, लेप्चा, गुरुंग, तमांग और मांगर शामिल हैं ।“ इनकी भाषा नेपाली है। हिंदी और नेपाली भाषा में बहुत समानता है। नेपाली पूरे सिक्किम राज्य में बोली- समझी जाती है। नेपाली समुदाय की बसावट पूरे राज्य में है। उनकी जीवन शैली तुलनात्मक रूप से बहुत किफायती है। नेपाली समुदाय साधारण कपड़े पहनते हैं और इनका आहार भी साधारण होता है । वे अच्छे किसान और व्यापारी हैं। इसके अलावा वे शिक्षा में भी आगे हैं जिसके कारण उन्हें सरकारी नौकरी सरलता से मिल जाती है। वे अपने साथ खुखरी रखते हैं जिसे लकड़ी या चमड़े के म्यान में रखा जाता है। इसे दाब के नाम से जानते हैं । धार्मिक दृष्टि से नेपाली समुदाय हिंदू धर्मको मानता है और हिंदू धर्म से सम्बंधित सभी पर्व– त्योहार मनाता है। शेरपा और तमांग समुदाय के लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं, लेकिन शेष नेपाली हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं। नेपालियों में जाति व्यवस्था पाई जाती है। नेपाली लोग अनेक त्योहार मनाते हैं जिनमें माघी संक्रांति, दसईं, तिहार आदि प्रमुख हैं।