निजता
खिड़कियां थी मकानों में
जिससे झांक
बाहर देख लेते थे
आते जाते लोगों से
राम राम
गुफ्तगू कर लेते थे
खिड़कियां अब भी है मकानों में
पर बन्द या पर्दों से ढकी
न हम तुम्हें देख सकें
न तुम हमें देख सको
सबको डर है
अपनी अपनी निजता का
छुपाने को इसी
डाल रखे हैं पर्दे
अपनी अपनी खिड़कियों पर