क्वान्टम फिजिक्स
क्वान्टम, दूरी या क्वांटिटी को कहते हैं। गति की धारणा बिना दूरी के नहीं बन सकती। गति तभी हो सकता है जब किसी पार्टिकल या पदार्थ को धक्का दिया जाय। ऊर्जा के बिना किसी पार्टिकल को धक्का नहीं दिया जा सकता है और बिना धक्के के कोई भी पार्टीकल गति नहीं कर सकता। मैटर अर्थात् पदार्थ को ऊर्जा के बल से जब धक्का दिया जाता है तब वह पार्टिकल उर्जावान हो गति करता है । और उसी गति की मात्रा दूरी या क्वांटम कह लाती है। लेकिन यह गति, क्वांटम या अस्थिरता बिना समय के संभव नहीं है।इस तरह, E = m c sq या, एनर्जी, मैटर, दूरी या स्पेस और समय तथा प्रकाश की अंतरिक्ष में स्थिर या निश्चित गति का परस्पर संबंध है।
उर्जावान पार्टिकल यदि कहीं बैठा भी है तो उसकी ऊर्जा उसमें रहती है। जिसे उस पार्टिकल की पोटेंशियल एनर्जी कहते हैं जैसे कोई पर्वत पर स्थित व्यक्ति। जब वह पर्वत से गिरेगा तो गिरते हुए उसकी गति उसी ऊर्जा का दूसरा रूप या काइनेटिक एनर्जी है। इसका मतलब यह है कि जो व्यक्ति ट्रेन पर बैठा है और ट्रेन चल रही है तो वह व्यक्ति एक ही समय में पार्टिकल या स्थिर भी है और गतिशील तरंग या वेव भी। इसी की समझ का सरदर्द क्वांटम भौतिकी है।
अब, सबसे बड़ा रहस्य अंतरिक्ष को समझना है। सारा संसार इसी अंतरिक्ष में किस तरह नियंत्रित तैर रहा है यही वह अभौतिक अंतरिक्ष ही क्वांटम स्पेस है। स्पेस ही वैक्यूम या अंतरिक्ष है । यह बिल्कुल खाली नहीं है क्योंकि यह उस मीडिया या माध्यम से भरा हुआ है जो संघर्ष या प्रतिक्रिया नहीं करते। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक जब आता है तब उसे इकेक्ट्रोमैगेट बल धक्का देते हुए लाते हैं। लेकिन वह प्रकाश अंतरिक्ष में उसी तरह बहता हुआ आता है जैसे कोई यात्री एस्क्लेटर पर हो और वह एस्कालेटर पर चलते हुए यात्री की कोई ऊर्जा खर्च नहीं हो रही हैं। है। यदि अंतरिक्ष में कुछ भी भौतिक रहा होता तो प्रकाश की यात्रा में उसके उससे संघर्ष करना पड़ता और ऊर्जा क्षीण होती। लेकिन अंतरिक्ष में बहते हुए प्रकाश में ऊर्जा की कोई क्षति नहीं होती।
फिर, अंतरिक्ष में प्रकाश की गति का क्या अर्थ है? संघर्ष रहित वातावरण या वैक्यूम में गति तो अनंत होनी चाहिए। जिस तरह बर्फ में फिसल जाने पर या एस्केलेटर पर निर्भर या फिसलने वाले का उसके गति पर उसका नियन्त्रण नहीं होता। उसी तरह प्रकाश के, कितना भी फैला हुआ अंतरिक्ष हो, उसमें बहने पर कोई ऊर्जा खर्च नहीं होती और इसका अर्थ है कि उसकी गति भी अनंत होनी चाहिए। लेकिन यह नहीं है। अंतरिक्ष शून्य नहीं है। अंतरिक्ष का माध्यम प्रतिक्रिया रहित है किंतु निष्क्रिय नहीं है। अंतरिक्ष में प्रकाश की यात्रा जिस माध्यम पर होती है उसकी निश्चित या कॉन्स्टेंट गति होती है। यही प्रकाश की गति कह लाती है।
अभी तक की धारणा यह है कि प्रकाश की गति वैक्यूम या अंतरिक्ष में 3x10xx8 मीटर प्रति सेकंड है। अलग अलग इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग जिनमें कुछ मनुष्यों की तरह छोटे छोटे कदम से दौड़ते हुए और कुछ हाथी की तरह लम्बे लम्बे डग भरने वाले, दोनों की गति अन्तरिक्ष में एक ही रहती है। सूर्य के प्रकाश में सात रंग अलग अलग ऊर्जा से भरे होते हैं। लेकिन यह कभी नहीं होता कि लाल रंग बाद में दिखे और बैंगनी पहिले। सभी रंग या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग जिसमें कोई रंग अधिक उचकता कूदता (फ्रीक्वेंसी और एम्प्लिट्यूड) चलता है और कोई लम्बे डग ( वेव लेंथ) भरता है, सभी साथ ही पहुंचते हैं क्योंकि प्रकाश की गति अन्तरिक्ष में सभी के लिए समान, 3x10xx8 मीटर प्रति सेकंड, होती है। यही आश्चर्य है कि जो प्रतिक्रिया/संघर्ष रहित, स्पेस या वैक्यूम, या अंतरिक्ष कह लाता है वहां वह यात्रियों, जैसे प्रकाश की तरंगों या विचार, की गति पर किस तरह नियंत्रण करता है? अंतरिक्ष में भरे हुए इस अभौतिक माध्यम या मीडिया को वैज्ञानिक डार्क मैटर कहते हैं।
क्वांटम भौतिकी इसी अन्तरिक्ष की खोज है। वह क्या है जो संघर्ष रहित है और जिसका फैलाव अंतहीन है । लेकिन उसका अस्तित्व है। वह शून्य नहीं है। वह वैक्यूम या संघर्ष रहित या बिना रिसस्टेंस या प्रतिक्रिया का अंतरिक्ष सूर्य या किसी भी नक्षत्र के प्रकाश या किसी भी इलेक्ट्रोमैगनेटिक तरंग जिसकी ऊर्जा चाहे कितनी भी क्यों न हो, एक निश्चित गति से बहने देती है और उन तरंगों की ऊर्जा की अपनी कोई क्षति नहीं होती।
ऋग्वेद 6.066.04 में मरूत तत्व का वर्णन है। यही क्वांटम है। मरुत या अंतरिक्ष, प्रकृति के नियम हैं जो अकाट्य होते हैं। प्राकृतिक अनुशासन को कोई भी भौतिक घटना चाहे वह प्रकाश की गति हो या मन के विचार, नहीं तोड़ सकते। अंतरिक्ष बिना किसी संघर्ष के ब्रह्मांड पर नियंत्रण करता है।
मरुत या अन्तरिक्ष में जहां भौतिक पदार्थ या पार्टिकल भरे रहते हैं उन पदार्थों में परस्पर संघर्ष होता है किंतु किसी पदार्थ या ऊर्जा से भरे पार्टिकल का उस संघर्ष रहित स्पेस या वैक्यूम या अन्तरिक्ष से कभी कोई संघर्ष नहीं होता। इसका अर्थ है कि मुझे दिल्ली से मुंबई जाने में पृथ्वी के सतह पर चलने में संघर्ष करना होगा न कि उस अंतरिक्ष से जो दिल्ली और मुंबई के बीच है। जिस अंतरिक्ष में सारी पृथ्वी तैर रही है और वही अंतरिक्ष दिल्ली से मुंबई तक भी है लेकिन उससे मुझे कोई संघर्ष नहीं करना होगा। यदि मैं इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग या कोई अंतरिक्ष यात्री होता तो मैं दिल्ली से मुंबई शीघ्र पहुंच सकता था क्योंकि मुझे प्रकाश की गति से अन्तरिक्ष में बिना कोई ऊर्जा खर्च किए चल सकता था और पृथ्वी के वायु मंडल में संघर्ष के कारण मेरी ऊर्जा खर्च होती जिससे मेरी गति, प्रकाश की अंतरिक्ष में गति से, थोड़ी सी कम हो जाती। विचार के चलने में ऊर्जा खर्च नहीं होती क्योंकि इसका माध्यम अंतरिक्ष है।
यदि किसी तरह अंतरिक्ष को समझा जा सके तो हम उस संघर्ष रहित या प्रतिक्रिया रहित स्पेस का उपयोग कर, परम्परागत भौतिक नियमों से मुक्त हो सकते हैं। तब प्रकाश ही क्यों, संसार के सभी उर्जावान पदार्थ उसी निश्चित गति से चल सकते हैं जिस तरह अलग अलग ऊर्जा से भरे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग अंतरिक्ष में समान गति से चलते हैं।
समय संभावनाओं का समुद्र है। घटना उन्हीं संभावनाओं में से एक का घटित हो जाना है। यही अंतरिक्ष या क्वांटम भौतिकी या भौतिक रूप में घटनाओं को समझने का विज्ञान है। अभौतिक या संघर्ष/प्रतिक्रियां रहित स्पेस या अंतरिक्ष में, भौतिक या संघर्षी/प्रतिक्रिया से निर्मित संसार के आभास या घटनाओं को, समझना ही क्वांटम फिजिक्स है।
भगवत गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि संसार भवसागर या संभावनाओं का समुद्र है जिसमें भौतिक रूप तब उत्पन्न होता है जब उनमें से कोई संभावना घटित होती है। संभावनाओं का यह अस्तित्व अभौतिक अंतरिक्ष में है जैसे किसी आर्किटेक्ट की कल्पना किंतु वही कल्पना भौतिक रूप में एक बिल्डिंग बन कर दिखती हैं। वह कहते हैं कि मरूत या अंतरिक्ष गामी विचार जो नियंत्रित रहते हैं उनकी गति अनंत है और, वे भौतिक समय और दूरी पर निर्भर नहीं है। यह मन का आकाश है जिसमें संभावना घटित होकर भौतिक बन जाती है। विचार की गति भौतिक नहीं है। वह एक ही समय समीप और बहुत दूर, दोनों एक साथ रह सकता है। भूत और भविष्य अपना स्थान बदल सकते है अर्थात् जो घटना भौतिक जगत में बाद में होनी चाहिए वह पहिले हो सकती है। मन के आकाश में संसार एक आभासी सत्य है जो अभौतिक अंतरिक्ष में भौतिक रूप में घटित हुआ दिखता है। यही माया है जो प्रकृति निर्मित है। अनियंत्रित विचार मरुत नहीं होते और उन कल्पनाओं का घटित होना सरल नहीं है। अंतरिक्ष का नियम उसी तरह विचारों की यात्रा पर, बिना किसी प्रतिरोध या प्रतिक्रिया के, उसी तरह नियंत्रण रखता है जैसे सूर्य कि प्रकाश की यात्रा, जब वह अंतरिक्ष से होता हुआ पृथ्वी पर आता है और, तब उसकी गति अन्तरिक्ष में निश्चित बनी रहती है।
प्रकृति में ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होती। क्यों? इसका कारण यही है कि प्रकृति अंतरिक्ष में स्थिर है और वहां उसे कभी कोई संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं होती। प्रकृति ही क्वांटम या अभौतिक अंतरिक्ष है जो श्रम से मुक्त है और सनातन है क्योंकि इसका कर्म कर्म होते हुए भी प्रतिक्रिया रहित है। यही अंतरिक्ष विज्ञान या क्वांटम भौतिकी है जो अभौतिक अंतरिक्ष में भौतिक विज्ञान का दर्शन है।
— कृष्ण गोपाल मिश्र