ग़ज़ल
दिल में खामोश मोहब्बत लिए फिरते हैं
बयां तो कर दे अंजाम से हम डरते हैं।
कैसी चाहत है कसक सी दिल में होती है
फिर भी मरते हैं ना हम न आहें भरते हैं।
बह ना जाए तेरी तस्वीर इन निगाहों से
सूख जाते हैं न आंखों से अश्क गिरते है।
जिनकी चाहत में जिंदगी गुजार दी मैंने
उन्हें खबर नहीं हम कितना प्यार करते है।
सब पूछते हैं मुझसे वो इंसा य फरिश्ता है
बस ये मालूम है हम सजदे में सिर धरते हैं।
दिल की बयां कर जानिब सोंच में डूबे रहते है
लिख कर हार गई क्या वो ग़ज़ल हमारी पढ़ते हैं।
— पावनी जानिब