गीतिका/ग़ज़ल

हमारी संस्कृति

भारत नित ही विश्वगुरू है,देता सबको ज्ञान,
संस्कार भारत के पाते,सबसे ही सम्मान।

नीति और नैतिकता मोहक,हम सबसे सुंदर,
पश्चिम से भारत के बेहतर,कला और विज्ञान।

मानवता को हमने जाना,हिंसा को त्यागा,
करुणा,दया,सत्य,मर्यादा,सद्कर्मों की आन।

पूजा हमने चाल-चलन को,जीना सिखलाया,
देह नहीं है रूह की भाषा,नैतिकता का मान।

तीज और त्यौहारों से तो,चोखा बना समाज,
नारी ने निज पातिव्रत से,गाया मंगलगान।

यहाँ विचारों में धन-दौलत,है गुरुओं की महिमा,
संस्कृति भारत की शोभित है,करे विश्व गुणगान।

पत्थर ने तो देव में पाया,कण-कण में भगवान,
मानवता तो पूज्य यहाँ है, है शुचिता का मान।

भूखे को हम रोटी देते,और प्यासे को नीर,
त्याग,समर्पण,दान,पुण्य का,यहाँ गूँजता गान।

मेलमिलापों की बेला है,हाथ से हाथ मिले हैं,
विविध वेशभूषा,धर्मों का,सुखकर नवल विहान।

गंगा-यमुना,हिमगिरि में भी,परम शक्तियाँ रहतीं,
लोककलाएँ मुस्काती हैं,अलबेली है शान।

ईद-दिवाली,क्रिसमस पर हम,सब ही नित खुश होते,
मंदिर,मस्जिद,चर्च सिखाते,बन जाना इंसान।

पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण,भारत का उत्थान,
संस्कृति पाई है जो हमने,करते हम अभिमान।

— प्रो(डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]