बा-बा
‘पिता’ पर उदय प्रकाश, ज्ञानरंजन, मन्नू भंडारी और मिथिलेश्वर की समृद्ध कहानी है, तो इस जीव पर शहंशाह आलम, पंकज चौधरी, राकेश प्रियदर्शी और स्वर्णलता ‘विश्वफूल’ की अच्छी कविताएं भी!
इस धराधाम पर मुझे लाने का श्रेय ‘पिता’ को देना ही चाहिए, किन्तु उनकी मर्जी से यहाँ नहीं आया हूँ, अपितु ‘माँ’ के साथ उनके रजिस्टर्ड ‘मस्ती’ के बाद तो धरती पर मेरा आना उद्देश्यविहीन हो जाता है!
पिता कभी भी ‘लिम्का’ या ‘कोकाकोला’ नहीं रहा, उसने हमेशा ही ‘अनुशासन’ में रखा, किन्तु जो हो, मैं पिता का अंधभक्त नहीं हूँ, बावजूद ‘पितृ दिवस’ के इस पुनीतावसर पर ‘बा’ को सादर नमन!
यानी क्षणिकांश-
“हिंदी-चीनी भाई-भाई में
‘चीनी दरिंदगी’ क्यों ?
अगर वो
500 ओडीआई रन भी
बना ले,
तो भारत
506 बनाकर जीतेगा
यानी बराबरी पर भी
छक्का !”