गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

छोड़कर जब अना तू उभर जायेगा।
बन के इन्सां तू बेशक संवर जायेगा।।
करके आँखों को तू बंद कर ले यकीं।
इश्क है तुझसे तो वो किधर जायेगा।।
याद आयी जो तेरी तेरा फिर सनम।
जग भुला कर तेरे ही शहर जायेगा।।
कुछ दिनों की है ये रात काली फकत।
दिन निकलते ही मौसम गुजर जायेगा।।
दुख न कर देखकर तू महल औरों के।
वक्त तेरा भी इक दिन सुधर जायेगा।।
कर इबादत खुदा की तू सिद्दत से फिर।
देखना इस कहर का असर जायेगा।।
खाओ खेलो जियो मस्त मौला होकर।
दिल से यारो तभी सबके डर जायेगा।।
मौत से डर कैसा वो तो आनी ही है।
मौत से पहले ही क्यूं तू मर जायेगा।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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