आओ मिलकर बंधन तोड़ें
आओ मिलकर बंधन तोड़ें,
प्रेम डगर से हमें जो मोड़ें।
जो होते हैं ऊंच नीच के,
बंधते लोग हैं आंख मींच के।
पर स्वार्थ की अब सब सोंचें,
मानवता के नीर से सींच के।
नैतिकता से मुंह मत मोड़ें।
आओ मिलकर बंधन तोड़ें।।
मानव की मानव से फिर,
कभी भी कोई रार न हो।
हँसी खुशी से सब मिल बैठें,
कोई पल बेकार न हो।
मन से नफरत के घट फोड़ें।
आओ मिलकर बन्धन तोड़ें।।
एक दूजे की खुशियों में नहायें,
हम सदा प्रेम की धार बहाये।
सतरंगी चादर हो जीवन की,
मिलकर खुशियों के रंग लगायें।
फिर दिल से दिल का नाता जोड़े।
आओ मिलकर बन्धन तोड़ें।।
अशोक प्रियदर्शी