स्वास्थ्य

खाँसी की सरल चिकित्सा

खाँसी जुकाम का ही दूसरा रूप है। जब कफ या बलगम नाक से निकलता है, तब हम उसे जुकाम कहते हैं और जब वह गले से निकलता है, तब हम उसे खाँसी कहते हैं। खाँसी में अतिरिक्त बुरी बात यह है कि यह बिगड़े हुए कब्ज और फेंफड़ों में विकार एकत्र होने का भी परिचायक है। गले से बार-बार जो खाँसी उठती है, उससे पता चलता है कि आँतों में बहुत-सा मल सड़ रहा है, जो निकलने के लिए व्यग्र है, मगर गुदा के रास्ते नहीं निकल पा रहा है और इसीलिए उसका उफान ऊपर की ओर हो रहा है। खास तौर से सूखी खाँसी का तो यही मुख्य कारण होता है। कई बार खाँसी शरीर में अम्लता (एसिडिटी) के कारण भी आती है।

खाँसी चाहे सूखी हो या गीली, वह इस बात का प्रतीक है कि शरीर में विजातीय द्रव्यों अर्थात् विकारों की मात्रा शरीर की सहन सीमा से बाहर होती जा रही है और यदि उनको तत्काल निकाला न गया, तो नये-नये रोग होने की पूरी सम्भावना है। हमारी अम्मा (दादी) प्रायः एक कहावत सुनाया करती थी- ‘लड़ाई कौ घर हाँसी, रोग कौ घर खाँसी’ अर्थात् ”हँसी-मजाक करना लड़ाई-झगड़े का मूल होता है और खाँसी रोगों का मूल होता है।“ यह कहावत सवा सोलह आने सत्य है। यदि हमें लड़ाई-झगड़े से बचे रहना है, तो लोगों का मजाक उड़ाने से बचना चाहिए और यदि अनेक रोगों से बचना है, तो खाँसी से बचना चाहिए।

खाँसी की चिकित्सा में कब्ज और जुकाम की सम्मिलित चिकित्सा करनी चाहिए। कब्ज दूर करने के लिए मिट्टी की पट्टी, एनीमा और कटिस्नान लेना चाहिए तथा जुकाम दूर करने के लिए गुनगुना पानी पीना चाहिए और पर्याप्त व्यायाम करना चाहिए। अच्छा तो यह हो कि इलाज की शुरुआत एक-दो दिन के उपवास या रसाहार से की जाये। खाँसी का इलाज तब तक करते रहना चाहिए जब तक इससे पूर्ण मुक्ति न मिल जाये। सामान्य खाँसी के इलाज में एक सप्ताह लग जाता है। अधिक पुरानी खाँसी होने पर अधिक समय भी लग सकता है। फेंफड़ों की सफाई के लिए प्रतिदिन 5 मिनट तक भस्त्रिका प्राणायाम करना आवश्यक है। यदि अम्लता (एसिडिटी) भी हो, तो कपालभाति और नाड़ीशोधन प्राणायाम का अभ्यास भी करना चाहिए। अम्लता के रोगियों को गुनगुने पानी की जगह साधारण जल पीना चाहिए।

यदि खाँसी अधिक परेशान करने वाली हो और लगातार खाँसना पड़ रहा हो, तो अदरक के रस में बराबर मात्रा में शहद मिलाकर चाटिए। इससे आराम मिलेगा, परन्तु भूलकर भी कभी कफ सिरप जैसी दवाएँ नहीं लेनी चाहिए।

— डाॅ विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]