/ विश्वास छोड़ूँगा नहीं/
/ विश्वास छोड़ूँगा नहीं/
लिखना चाहता हूँ,
टूट गयी मेरी कलम की नोक
बोलना चाहता हूँ,
बाँधी गयी मुँह पर पट्टी
चलना चाहता हूँ,
बंधे गये मेरे हाथ – पैर
बोझ बनाया सिर पर भार।
मेरे मन की, तन की अस्वस्थता
मिट जाएगी संकल्प की चेतना में
विश्वास बनाये रखूँगा भरपूर
मेरा भी एक दिन होगा
सबको तोड़़कर चलूँगा
इतिहास का एक पन्ना,
महान विचारों के साथ
गौरव गाथा मेरी भी होगी।
जाति, प्रांत, साँप्रदायिक धंधा
काल की कठोरता में
कुटिल तंत्रों का जाल
जरूर ध्वस्त होगी।
समता-बंधुता का सौध
संवैधानिक मूल्यों का बोध
हर अंतश्चेतना में विकसित होगा।