ग़ज़ल
अभी-अभी तो मैंने होश को संभाला है
कि पहली बार कदम घर से निकाला है।
बड़ी ही धुंधली थी तस्वीर हमारी घर में
सुना है शहर में मेरे नाम का उजाला है।
उड़ान भरके आसमान को छूना चाहूं
न काटो पंख एक मुद्दत से इनपे ताला है।
आज दिल ज़िद्द पर आ गया है मेरा
कुछ हो अंजाम मंजिल पे दिल उछाला है।
मेरा वजूद मुझ को ढूंढ रहा हो जैसे
मैं बदल जाऊंगी या वक्त बदलने वाला है।
खौफ हमको नहीं जानिब जीने मरने का
शेरनी हूं शेर दिल बाप ने मुझे पाला है।
— पावनी जानिब सीतापुर