गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मौसम आया बरसाती
दर्द है जागा बरसाती

अबके बरस फिर याद आया
तेरा वादा बरसाती

यूँ भी कभी उगते हैं ख़याल
जैसे पौधा बरसाती

इतना ज़र्द हुआ कैसे
तेरा चेहरा बरसाती

क्यों मरुथल को सुनाता है
तू अफ़साना बरसाती

— धर्मेन्द्र गुप्त

धर्मेन्द्र गुप्त

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