ग़ज़ल
पूछिएगा प्रश्न कोई आप यदि ‘सरकार’ से।
प्रश्न का उत्तर मिलेगा प्रश्न की बौछार से।
आप उनकी ग़लतियों पर टोककर तो देखिए,
आक्रमण करने लगेंगे ‘तर्क’ की तलवार से।
‘नोटबंदी’ से हुए जो फ़ायदे, वे गुप्त हैं,
हो गया है लुप्त ‘काला धन’ सकल संसार से।
सांसदों ने कर दिया आदर्श हर इक ग्राम को,
जी रहे हैं ‘स्वच्छ भारत’ में सभी हम प्यार से।
‘आँकड़ों’ की घोषणाएँ योजनाओं से बड़ी,
लोग भौंचक्के हुए सुनकर इन्हें विस्तार से।
सिर्फ़ अम्बानी-अडानी ही करेंगे ‘काम’ सब,
और सबको मुक्ति दे दी जायगी व्यापार से।
‘बात मन की’ वो ज़बरदस्ती सुनाता है हमें,
हम कहें कैसे हमारी बात ‘नम्बरदार’ से।
— बृज राज किशोर ‘राहगीर’
आपकी यह गजल मोदी जी की सरकार के प्रति घोर दुर्भावनापूर्ण है। आपको उनकी कोई उपलब्धि नजर नहीं आती, इसी से पता चलता है कि आप पुराने कागरेसी हैं। लगता है कि आपको घोटालों वाले दिन ही वापस चाहिए।