गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल 

पूछिएगा प्रश्न कोई आप यदि ‘सरकार’ से।
प्रश्न का उत्तर मिलेगा प्रश्न की बौछार से।

आप उनकी ग़लतियों पर टोककर तो देखिए,
आक्रमण करने लगेंगे ‘तर्क’ की तलवार से।

‘नोटबंदी’ से हुए जो फ़ायदे, वे गुप्त हैं,
हो गया है लुप्त ‘काला धन’ सकल संसार से।

सांसदों ने कर दिया आदर्श हर इक ग्राम को,
जी रहे हैं ‘स्वच्छ भारत’ में सभी हम प्यार से।

‘आँकड़ों’ की घोषणाएँ योजनाओं से बड़ी,
लोग भौंचक्के हुए सुनकर इन्हें विस्तार से।

सिर्फ़ अम्बानी-अडानी ही करेंगे ‘काम’ सब,
और सबको मुक्ति दे दी जायगी व्यापार से।

‘बात मन की’ वो ज़बरदस्ती सुनाता है हमें,
हम कहें कैसे हमारी बात ‘नम्बरदार’ से।

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)

One thought on “ग़ज़ल 

  • डाॅ विजय कुमार सिंघल

    आपकी यह गजल मोदी जी की सरकार के प्रति घोर दुर्भावनापूर्ण है। आपको उनकी कोई उपलब्धि नजर नहीं आती, इसी से पता चलता है कि आप पुराने कागरेसी हैं। लगता है कि आपको घोटालों वाले दिन ही वापस चाहिए।

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