ग़ज़ल
आ गई बरसात सावन आ गया।
सुबह में भी रात सावन आ गया।
चमकती हैं बिजलियां ठंडी हवा,
घूंघट में प्रभात सावन आ गया।
मस्त पक्षी कर रहे सरगोशियां,
तड़पते जज़्बात सावन आ गया।
पर्बतों के साथ मेघा खेलता,
क्या दृश्य क्या बात सावन आ गया।
हंसती हैं फुनगियां रिमझिम तले,
भूमि की सौगात सावन आ गया।
मान क्यों करता है चंदा लौ पर,
क्या तेरी औकात सावन आ गया।
घोंसलों में बोट अब घबरा रहे,
डरते, करते बात सावन आ गया।
मरूस्थल में सुन फ़कीरों की दुआ,
पड़ गई खैरात सावन आ गया।
बालमां सबके लिए समता लिए,
बिन कर्म बिन जात सावन आ गया।
— बलविन्दर ‘बालम’