भीगी-भीगी सुबह
भीगी-भीगी सुबह हो गई।
मेघों की यह विजय पय मई।।
देखो काले बादल आए।
खेत, बाग, वन में वे छाए।।
तपन भानु की कहीं खो गई।
भीगी-भीगी सुबह हो गई।।
बादल गरजे भूरे-काले।
लगे उमड़ने बड़े निराले।।
बिजली चमकी लुएँ लो गई।
भीगी-भीगी सुबह हो गई।।
घर,आँगन बरसा अति पानी।
बाहर मत जा कहती रानी।।
छत-गलियों की धूल धो गई।
भीगी-भीगी सुबह हो गई।।
चलते छत के सभी पनाले।
नग्न नहाते हम मतवाले।।
कीचड़ बहकर दूर हो गई।
भीगी-भीगी सुबह हो गई।।
चिड़ियाँ छिप बैठीं झाड़ों में।
बकरी , भेड़ें हैं बाड़ों में।।
गौरैया निज नीड़ रो गई।
भीगी-भीगी सुबह हो गई।।
सभी किसान मगन हैं मन में।
शशक हिरन छिपते घन वन में।।
‘शुभम’भानु की किरण सो गई।
भीगी-भीगी सुबह हो गई।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’