कथा साहित्यकहानी

सुन्दर अहसास

विनीता रिक्शा में नए घर की तरफ जा रही थी। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था किसी की निगाहें उसका पीछा कर रही है। वह भी चाहती थी कि एक बार पलट कर  देख लें ।पर पता नहीं क्यों उसका मन नहीं मान रहा था?वह रिक्शा वाले से बोली, भैया थोड़ा जल्दी करो। मौसम खराब हो रहा है। ऐसा लग रहा है कोई तूफान आने वाला है।
नहीं-नहीं, यह बस तेज हवाएं हैं।आप यहां पर नई है ना।इसलिए यहाँ के मौसम से अनजान हैं।यहाँ, मौसम पल-पल बदलता है। मेरा मतलब यह नहीं था। मैडम पहाडों में तो  इस तरह की तेज हवाएं चलती रहती हैं। कभी-कभी तेज हवाओं के साथ तेज बौछारें भी हो जाती हैं।तभी तो यहाँ पर दूर-दूर से लोग घूमने आते हैं। इस शानदार मौसम का आनंद लेते हैं। विनीता, को वह रिक्शावाला कम,गाइड ज्यादा लग रहा था। वह पूरे रास्ते उसे पहाड़ियों के बारे में ही बताता रहा था। उसका सफर भी आराम से कट गया था।
वह अपने नए ठिकाने से कुछ ही दूर उतर गई। उसने रिक्शा वाले को किराया दिया। चुपचाप अपना बैग लेकर घर की तरफ चल पड़ी। कंपनी उसे हमेशा किसी ना किसी नए स्थान पर भेज देती थी। इसका एक बड़ा कारण था कि वह बहुत परिश्रमी थी।
वह नए ऑफिस को चलाने के लिए हमेशा प्रयास करती थी। कंपनी उसके कामों से बहुत खुश थी। नए घर में आकर वह थोड़ी देर आराम करना चाहती थी। तभी दरवाजे पर हुई हरकत की आवाज से वह उठ खड़ी हुई।उसनें दरवाजा खोला,दरवाजे पर एक उन्नीस-बीस साल की लड़की खड़ी थी।साँवली सी सूरत, पतली-पतली सी।इससे पहले विनीता कुछ बोल पाती।
वह लड़की ही बोल पड़ी, मैडम मेरा नाम सोनी है। मैं यहाँ पर साफ-सफाई का काम करने आई हूँ।पर मैंने तो—–।जी,मैडम मैं कंपनी की ओर से हूँ।आपकी सेवा के लिए।विनीता हँसे बिना ना रह सकी।ओह, अच्छा! ठीक है, अंदर आ जाओ।
जी,मैडम। मैडम पहले आपके लिए कॉफी बनाती हूँ।  हां, सोनी दो कप बना लो। मैं मुंह हाथ धोकर आती हूँ,जी। वह बाथरूम की तरफ बढ़ गई। मुंह हाथ धोते-धोते वह बार-बार आईने में अपना चेहरा देख रही थी। अब उसके चेहरे में पहले वाली बात नहीं थीं।उसके चेहरे की नमी गायब थीं। आंखों के नीचे के काले धब्बे दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे। बालों में भी चमक नहीं थी। बालों में सफेद दिखाई देने लगी थी। वक्त कितनी जल्दी बीत जाता है।
मैडम कॉफ़ी तैयार है। वह हाथ में टॉवेल लिए ही ड्राइंग रूम की ओर चली आई।मैडम आप बैठिए टॉवल मुझें दीजिए।सोनी की आवाज में गजब की झनझनाहट थी। वह कॉफ़ी में उठ रहे धुँए को देखें जा रही थीं। कॉफी के साथ  सफेद रसगुल्ले भी रखे थे।
अरे,इतना सब किसलिए!मैडम,जब सोनी हैं, फिर तकलुफ़ की क्या बात!वाह -वाह भी,तुम बातें बहुत अच्छी करती हो। आप जल्दी से कॉफ़ी पी लें, ठंडी हो रही है। तुम भी मेरे पास बैठो।मैं आपके सामने कैसे बैठ सकती हूँ। क्यों नहीं, बैठ सकती?
पहले वाली मैडम,मेरे काम से खुश नहीं थीं।वो बात पर मेरा अपमान करती रहती थीं। विनीता,ने उसका हाथ पकड़ उसे अपने पास बैठा लिया।छोड़ो पुरानी बातें। मैडम का प्यार  देखकर वह भावुक हो गई।क्या हुआ सोनी,कुछ नहीं?तुम कॉफ़ी बहुत अच्छी बनाती हो।सच दीदी,सॉरी, मैडम। अच्छे काम की तारीफ होनी ही चाहिए।
सोनी,पिछली बातों को भूल जाओ।पर दीदी! सोनी, आगे कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है।दीदी,मुझे मीठा बहुत पसंद हैं।अच्छा शाम को खाने में क्या बना रही हो? जो आप कहे सरकार।दोनों एक साथ खिलखिलाकर हँस पड़ी।आज तो आलू-मटर चलेगा। बिल्कुल चलेगा दीदी! तुम्हारी हंसी कितनी प्यारी है?
वह अपनी तारीफ सुनकर शर्मा रही थीं। अच्छा मैडम मैं खाने की तैयारी करती हूँ। विनीता सुबह जल्दी उठ गई।उसनें सोनी को भी आवाज लगाई।वह अंगड़ाई लेती हुई बाहर आ गई।उसकी अँगड़ाई में वहीँ जवानी का अल्हड़पन था।चलो सैर करने चलते हैं।दीदी इतनी सुबह-सुबह,चलो कोई बहाना नहीं चलेगा।
सड़के सुनसान पड़ी थी। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी।पेड़- पौधे ओस में  नहाए लग रहे थे।पेड़-पौधों की चमक आँखों को शीतलता प्रदान कर रही थीं। सड़कों पर लाइटों की दूधिया रोशनी फैल रही थीं।पहाड़ आसमानों को छू रहे थे।चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ दिखाई दे रहे थे। दोनों आगे बढ़ती जा रही थी।सड़कों पर बहुत थोड़े लोग दिख रहे थे।बस कुछ बजुर्ग ही नज़र आ रहे थे।
रास्ते में एक लड़का बार-बार सोनी को देख रहा था।सोनी भी उसे देख रही थीं।मैंने जैसे ही सोनी को देखा,वह मुझें देखकर शर्म से लाल हो गई। जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो। वह चाहकर भी कुछ नहीं बोल सकी। अब तो यह  हमारी रोज की दिनचर्या हो गई थी।
दस से पाँच ऑफिस में जॉब।घर पर ढेर सारी बातें,सुबह की सैर। वह लड़का हमें रोज ही मिलता,दोनों एक-दूसरे को देखकर बहुत खुश हो जाते थे। उनके बीच कुछ तो चल रहा था,पर क्या? कभी-कभी लगता था शायद यह एक दूसरे को पहले से जानते हैं। कभी लगता नहीं ऐसा नहीं हो सकता। फिर मैं खुद की ही सवालों पर हंस पड़ती। इसी उमर में तो प्यार होता है।बिना जान-पहचान के लोग एक-दूसरे की तरफ खिंचे से चले आते हैं। इसी का नाम तो प्यार है। कितना सुंदर अहसास होता है?कितनी तड़प होती है? जिस दिन इस प्यार की शुरुआत होती है। जीवन बदल जाता हैं।हर चीज  सुंदर लगती है।सजना-सवरना अच्छा लगता है। नींद में भी सुंदर सपने आने लगते हैं। हर पल सुन्दर लगता है।ये पल जीवन में कितने अनमोल होते हैं।
दीदी आज आप ऑफिस नहीं जा रही हो। हाँ,सोनी आज मैने छुटटी ली हैं।हम बाजार चलेंगे, अपने लिए कुछ  खरीदना हैं। ठीक है दीदी, आज बहुत अच्छी धूप खिली हैं। पहाड़ों में ऐसा सुन्दर मौसम कम ही दिखाई देता है। तैयारी करो सोनी, ठीक है दीदी!
विनीता ने आज  हल्के हरे रंग की साड़ी पहनी,सिर पर ऊनी टोपी, एक सुंदर शाल। सोनी भी तैयार थी। दोनों बाजार की तरफ चल पड़ी।सोनी,आज खाना बाहर ही खाएंगे। जी दीदी,वह खुशी से चहक उठी। क्या तुम किसी अच्छे होटल के बारे में जानती हो?
जी दीदी, पहले बाजार फिर किसी होटल में चलेंगे।विनीता ने अपने लिए तथा सोनी के लिए कई ड्रेसेस खरीदी।फिर वह सोनी के साथ एक पहाड़ी पर बने छोटे से होटल में गई। उन्होंने खाने का आर्डर दिया। वह यह देखकर हैरान रह गई, जो लड़का खाना लेकर आया,वह वही लड़का था। जो रोज सुबह उन्हें दिखाई देता था।मैडम और कुछ चाहिए।नहीं,सोनी को देखकर वह खिला-खिला नजर आ रहा था। वह बार-बार उसे ही देख रहा था। मैंने खाने का बिल दिया और हम घर की तरफ चल पड़े।
सोनी एक बात पूछूं?दीदी, उसका नाम रवि है। तुम उसे कब से जानती हो? जब से वह यहां आया है। क्या इरादा है? दीदी हम जैसे लोगों के इरादों का कोई मूल्य नहीं होता है।हमारे सपनों का कोई अर्थ नहीं होता। हम सिर्फ सपने देखते हैं।क्या तुम्हारा परिवार इस रिश्ते के लिए मान जाएगा? दीदी परिवार में सिर्फ एक दूर की चाची है।उसी ने मेरा पालन- पोषण किया है।उसी ने मुझे पढ़ाया-लिखा है। क्या रवि इस रिश्ते के लिए तैयार हैं?जी दीदी, कहकर वह शरमा गई।विनीता की भावनाएं समझ रही थीं।
दीदी, आज आपने आने में बहुत देर कर दी है। हाँ, सोनी कंपनी मुझे दूसरी जगह भेज रही है ।दीदी मुझे भी अपने साथ ले चलो। आपने मुझे जो अपनेपन का सुंदर अहसास करवाया है। उन अहसासों के बिना जीवन की कल्पना करना भी अब असंभव लगता है। सोनी ऐसा नहीं सोचते, मुझे तो एक ना एक दिन जाना ही था। पर मैं अपने साथ, तुम्हारे साथ बिताए सुंदर पल को भरकर ले जा रही हूँ।तुम चिंता ना करो।
मैंने रवि से बात कर ली है।कल उससे तुम्हारी शादी करवा दूंगी। पर दीदी मैंने सारी तैयारियां कर ली है।उसके लिए अपनी कंपनी में जॉब की व्यवस्था भी कर दी है। तुम्हारी चाची कल सुबह आ रही है। तुम्हें अपने प्यार के साथ नए अहसासों का अनुभव होगा। जो जीवन भर बुलाए नहीं जा सकते।
वह दीदी, कहकर विनीता के गले से लग गई।सोनी की शादी रवि से हो गई।दोनों बहुत खुश थे। आज फिर से वह अपना सामान लेकर स्टेशन की तरफ बढ़ रही थी। सोनी और रवि उसे भावुक मन से विदाई दे रहे थे। दीदी,आप देवी है। आप इसी तरह लोगों को खुशियों का अहसास दिलाती हैं। भगवान जल्दी ही आपकी झोली को सुंदर अहसासों से भर देगा।
रेल गाड़ी चल पड़ी। सोनी की छवि दूर होती जा रही थी। विनीता ने अपनी सीट पर आंखें बंद कर ली थी। अब वह नए अहसासों के बारे में सोच रही थी।ये सुन्दर अहसास ही उसके अकेलेपन की पूंजी थीं।

राकेश कुमार तगाला

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