क्षणिका : विकास
“विकास” का बोझ,
धरती से और
सांसों का बोझ कंधे पर
जब उठाया न गया,
मासूम ने धरती पर
“जीवन” उगा दिया।
**********
विकास की आंधी में
सब बढ़ गए आगे
अबोध अर्थव्यवस्था
सिसकती ही रही।
— अंजु गुप्ता
“विकास” का बोझ,
धरती से और
सांसों का बोझ कंधे पर
जब उठाया न गया,
मासूम ने धरती पर
“जीवन” उगा दिया।
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विकास की आंधी में
सब बढ़ गए आगे
अबोध अर्थव्यवस्था
सिसकती ही रही।
— अंजु गुप्ता