/ यदि आप होते तो../
आप बहुत याद आते हैं
मान्य दत्ता महोदय जी,
सुना था कि आप
इस दुनिया में नहीं हैं
कई साल पहले चल बसे हैं
आपके साथ बड़ी कुर्सी पर
अपने प्राचार्य कक्ष में
बिठाकर हमें पढ़ाते थे
बहुत बड़ा सम्मान लग रहा था
पंद्रह साल की उस उम्र में
जाति का विकार
मैं नहीं जानता था
गरीबी मेरे साथ खेल खेलती थी
मेरे पास आँसू के बिना और कुछ नहीं थी
केवल पढ़ाई करने की शौक थी
एक प्यास थी, ढ़ूँढ़ता था
जग का रहस्य, जन्म का सार
हर पुस्तक में खोज़ता था,
मेरे मन का आह भरनेवाला था
आपका स्नेहमयी वातावरण
मुझपर आपकी कृपा, प्यार बरसता था
स्नातक की उपाधि, वही प्रथम
आपकी छाया में मैंने हासिल की थी।