कविता

जलन

लोगों की आदत में
शुमार है जलने की,
कोई आप से जलता है
तो कोई आप के परिवार से
और तो और
कोई आपके बच्चों से भी
जलन रखता है
इतना तक ही हो
तो भी कोई बात नहीं,
लोग तो आपसे, आपके परिवार से
आपके विकास ही नहीं
आपके सुखी जीवन से भी
जलते हैं।
आपका हंसता खेलता जीवन
उन्हें रास कहाँ आता,
आप का आचरण, श्रम और
संतोष उन्हें कहाँ दिखता
आपका सुखमय जीवन
लोगों को बहुत चुभता।
अपना तो उन्हें कभी भी
कुछ भी गलत नहीं लगता,
आलस्य और ईर्ष्या से उनका
बड़ा गहरा रिश्ता।
बस ! उनका तो
एक सूत्रीय कार्यक्रम है
लोगों से जलन रखना
और अपने मुँह मियां
मिट्ठू बनना ही आदत है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921