गीत/नवगीत

तरकश..

तरकश..

तरकश में वो तीर कहां अब, जो दुश्मन को ख़ामोश करें।

आओ हम तुम मिलकर अब कुछ तो प्रयास रोज़ करें।

दुश्मन है वो बहुत पुराना,रोज़ जाल नया वो बिछाएगा ,

अजगर का फन कुचलने को आओ आज ही उदघोष करें।

तरकश में अब …..

प्यार समझोते की भाषा उसको समझ न फिर आनी है,

ऊपर से मीठा अंदर से जहरीला उसकी ये फितरत पुरानी है,

तुम केसरी रंग फहराकर हौसलों को बुलंद करो अब,

म्यान में बैठी ये तलवारें धधक रही इनको कैसे मौन करें,

तरकश में अब वो तीर……

अपने इतिहास से सीखो यूं न बातों से बस निंदा करो,

दुश्मन आंख उठाए तो उसकी भाषा में शर्मिंदा करो,

बातें बहुत अब हो चली यूं तो टेबल टाक भी ज़ारी है,

अब बदल लो अपनी नीति भी मन में नया जोश भरें।

तरकश को अब भर दो तीरों से जो दुश्मन को ख़ामोश करें।

कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |