पद का मद
‘मद’ अर्थात ‘घमंड’ जी हाँ ! जिसका फलक विस्तृत भी है और विशाल भी।सामान्यतः देखने में आता है कि पदों पर पहुंचकर लोग खुद को शहंशाह समझने लगते हैं,पद के मद में इतना चूर हो जाते है कि अच्छे, बुरे ,अपने, पराये का भी ध्यान नहीं रख पाते हैं।वे इतने गुरुर में जीते हैं कि वे ये भूल जाते हैं कि पदों पर रहकर पद की गरिमा बनाए रखने से व्यक्ति की गरिमा पद से हटने के बाद भी बनी रहती है। लेकिन पद का अहंकार कुछ ऐसा होता है कि लोग खुद का खुदा समझ बैठते हैं।ऐसे लोगों को सम्मान केवल पद पर रहते हुए ही मिलता है, लेकिन दिल से उन्हें सम्मान कोई नहीं देता। जो देते भी हैं, वे विवश होते हैं अपने स्वार्थ या भयवश और चाटुकारों की फौज उनका महिमामंडन और अपना हित साधती रहती है। ऐसे में पद के मद में चूर व्यक्ति इसी को अपनी छवि ,अधिकार ,कर्तव्य और लोकप्रियता का पैमाना मान सच से बहुत ….बहुत दूर भागता रहता है। काश! पद पर रहते हुए यदि हम ,आप केवल ये विचार करते रहें कि पदों की एक गरिमा है,जिसे बनाना ही नही, बनाए रखना भी पदासीन व्यक्ति का उत्तरदायित्व है। उसके लिए बस केवल इतना ध्यान रखने और विचार करने की जरुरत भर है कि उक्त पद पर यदि कोई अन्य व्यक्ति पदासीन होकर वही करे जो मैं कर रहा हूँ या करने की सोच रखता हूँ, तो मुझे पसंद आयेगा या नहीं। यदि नहीं तो फिर आपने ये कैसे मान लिया,जो आपको पसंद नहीं आता ,वो दूसरे को भला कैसे पसंद आ सकता है।
पद महज एक जिम्मेदारी है,उत्तर दायित्व है जिसका गरिमामय निर्वहन पदासीन व्यक्ति की सिर्फ़ जिम्मेदारी ही नहीं कर्तव्य भी है।
इसलिए पद की गरिमा के विपरीत जाकर कुछ भी करना,पद के मद में चूर होकर तानाशाहों सरीखा आचरण करना पद का मान मर्दन तो करायेगा ही, आपके सम्मान ,प्रतिष्ठा, छवि और सामाजिक, व्यवहारिक ,पारिवारिक संबंधों ही नहीं आपको निजी तौर पर भी इतनी अधिक चोट पहुँचाएगा,जिसे सह पाना भी आपके लिए व्यक्तिगत तौर पर असहनीय भी हो सकता है। क्योंकि कि पद से हटने के बाद आपकी स्थिति निचुड़ चुके गन्ने जैसी होगी। आप के हाथ में किसी की स्वार्थपूर्ति का साधन जो नहीं होगा । ऐसे में तब उन चाटुकारों की फौज आपसे बहुत दूर कहीं और अपना उल्लू सीधा करने की जुगत में लगी होगी साथ ही आपकी बेवकूफी और मूर्खता का मजाक भी उड़ाती फिर रही होगी ।तबाह पद के मद में खुद को कल तक शहंशाह मानने वाले आप केवल कुंठित और उन तात्कालिक स्वार्थी हितैषियों को सिर्फ़ कोसने के सिवा कुछ भी नहीं कर पायेंगे और पछतायेंगे।
फैसला आपको (पदासीन व्यक्ति) को करना है कि आपके लिए उचित, अनुचित क्या है?पद के मद में चूर होना या अपने को लोगों के दिलों में स्थापित करना? विचार जरूर कीजिए।