जो रोटी बेलता है
हर जोर, जुल्म की
टक्कर में
संघर्ष हमारा नारा है..
भारत के
नियोजित शिक्षक एक हो !
कवि धूमिल जी कहिन-
एक आदमी रोटी बेलता है,
दूसरा आदमी रोटी खाता है;
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है,
न रोटी खाता है,
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है !
लॉकडाउन में
एक ही जगह रहने से
एक कार्य करने से
काफी सुकून
और शांति मिल रही है,
पर हँसिये मत !
मैं श्रमिक परिवार से हूँ,
मेरे परिवार में
सभी श्रमिक हैं !
जहाँ श्रम,
वहाँ शर्म कैसा ?