चाय दो अदरख वाली
अदरख वाली चाय से ,मन का मिटे विषाद ,
बन्दर भालू जी कभी ,ना जाने ये स्वाद,
ना जाने ये स्वाद,सदा उनको फल भाते ,
भालू पा के शहद ,ख़ुशी से धूम मचाते ,
कहें धीर कविराय ,करे जो मानव चख चख ,
उसको देना चाय ,जिसमे घुली हो अदरख।
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अदरख वाली चाय से ,मन में आता जोश ,
उसकी प्यारी महक से ,मन खो देता होश ,
मन खो देता होश ,ख़ुशी से वो इठलाता ,
पीकर बढ़िया चाय ,हमेशा मन ये गाता,
जब होती बरसात ,झूमती मन की डाली ,
मन ये बोले मीत,चाय दो अदरख वाली।
— महेंद्र कुमार वर्मा