कहानी

खासी प्रेम कथा – मोर और सूरज

खासी मान्यता है कि ईश्वर की पहली रचना पृथ्वी अर्थात का रम्यो और उनका पति ऊ बासा थे। उनके चार बेटियाँ – सूरज, पानी, हवा, आग और एक बेटा – चाँद थे। इनमें सूरज सबसे बड़ी संतान थी। सभी सुख पूर्वक रहते थे। सूरज का विवाह मोर के साथ हुआ था। कहते हैं उस समय संसार नया-नया बसा था। सभी एक साथ रहते थे और उनका स्वर्ग से भी आना-जाना था। सूरज और मोर पति-पत्नी की भाँति स्वर्ग में रहते थे। दोनों में अगाध प्रेम था। सुबह होते ही सूरज पूरी धरती के रोशनी से चमकाने के लिए निकल जाती और मोर स्वर्ग के सुन्दर उपवन में घूमता था।

जाड़े की सुबह थी और ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। सूरज अकेले ही पूरे आकाश और धरती को चमका रही थी। उसका पति मोर सदैव की भाँति बगीचे में घूम रहा था। स्वर्ग का बाग़, ऐसा बाग़ था जहाँ कभी भी अँधेरा नहीं होता था। वहाँ हमेशा चिड़ियाँ चहचहाती थीं और तरह-तरह के सुन्दर फूल खिलते थे। सुरम्य वातावरण और खुशनुमा मौसम का आनंद लेते हुए मोर की दृष्टि धरती पर पड़ी। पूरी धरती सूरज की रोशनी से जगमगा रही थी। उस रोशनी में उसकी दृष्टि दूर से एक युवती पर पड़ी, जो रानी के जैसी लग रही थी। वह सुबह की धूप में अपना पीला और हरा शाही आँचल फैलाए मस्ती में झूम रही थी। मोर ने पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों की सुन्दरता के बारे में सुन रखा था। उसने सोचा कि ज़रूर ही वह सुन्दर युवती रानी होगी और संसार की सबसे सुन्दर स्त्री होगी।

मोर का ह्रदय उस अनजान सुंदरी के प्रति आकर्षित हो गया। उसने मन ही मन में कहा – वाह ! क्या युवती है ? कितनी सुन्दर है ? वह मेरी पत्नी से भी ज्यादा सुन्दर होगी। मेरी पत्नी के पास तो मेरे साथ बैठने का भी समय नहीं है, न ही उसके पास जीवन का आनंद उठाने का वक्त है। वह तो हमेशा अपने काम में व्यस्त रहती है। वह उस सुन्दर युवती के बारे में जितना सोचता, उतना ही उसके प्यार में डूबता जाता। धीरे-धीरे उसका अनजाने के प्रति प्यार पागलपन की सीमा तक पहुँच गया। वह हर पल बस उसके बारे में ही सोचता – वह कौन होगी ? किसकी बेटी होगी ? अब चाहे जो हो जाए, मैं उसके पास जरूर जाऊँगा।

वह अपने मन की बात बहुत दिनों तक छिपा कर न रख सका। उसकी बेचैनी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी अत: उसने दृढ़ निश्चय किया और बिना कोई भूमिका बाँधे उसने अपने मन की बात अपनी पत्नी सूरज को बताई। साथ ही अपना निर्णय सुनाते हुए कहा – सूरज, मैं तुम्हें छोड़कर जा रहा हूँ और शेष ज़िन्दगी मैं उस सुन्दर युवती के साथ बिताना चाहता हूँ। मोर की बात सुनकर सूरज रो पड़ी। उसने अपने पति को समझाने की पूरी कोशिश की। उसे पृथ्वी की नश्वरता के बारे में भी बताना चाहा कि धरती पर जो कुछ है वह एक समय के बाद नष्ट हो जाती है पर मोर की आँखों पर अनजाने प्यार का पर्दा पड़ा हुआ था।

वह कुछ भी नहीं सुनना चाहता था न ही वह समझाने के लिए तैयार था। सूरज का दिल टूट गया। वह सोचने रही थी कि क्या उसके प्यार में कोई कमी थी ? क्या उसने अपने पति से सच्चा प्यार नहीं किया ? क्या कारण है कि मोर का घमंडी और निष्ठुर मन उसके दर्द को नहीं समझता। उसकी कुछ समझ में नहीं आया। वह मोर से लिपट कर खूब रोई और उसके आँसू मोर के पंखों पर गिरने लगे, जिससे उसके पंखों पर सुनहरे दाग बनते जा रहे थे। अंत में कठोर ह्रदय मोर ने अपने आपको सूरज की बाँहों से अलग किया और धरती की ओर चल पड़ा।

मोर जब धरती पर पहुँचा तो सब कुछ उसकी कल्पना के विपरीत था। उसने जिस स्वर्ग की कल्पना की थी, वास्तव में वह वैसा नहीं था। वहाँ उसका स्वागत करने के लिए बाँहें फैलाए खड़ा था। बस, चारो ओर एक बड़ा मैदान था, जिस पर दूर-दूर तक सरसों के पौधे थे, जो हवा के झोंके से हिल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मानो वे उस पर हँस रहे हों। सचमुच दूरी ने मोर को धोखे में डाल दिया था। जिस युवती के प्रति वह इतना आकर्षित था, जिसकी कल्पना करके वह रोमांचित था, वह नाचती हुई युवती और कोई नहीं, हवा में लहराते-झूमते सरसों के पौधे थे।

अब रोने की बारी मोर की थी। ‘आह ! क्या किस्मत है ?’ मोर सोचने लगा। वह बहुत ही पछताया। उसे अपनी पत्नी सूरज के साथ बिताए पलों और सच्चे प्यार की याद आती। वह दुःख के सागर में डूब गया। वह पुन: अपनी पत्नी के पास जाना चाहता था। उसे पूरा विश्वास था कि जब वह वापिस जाएगा तो उसका पहले की तरह स्वागत होगा क्योंकि उसकी पत्नी उसे बहुत प्यार करती है।

उधर स्वर्ग से मोर की दयनीय दशा देख कर सूरज बहुत दुखी हुई और रो पड़ी। वह उसे स्वर्ग में वापिस लाना चाहती थी परन्तु उसके बहाए आँसुओं ने मोर के पंखों को इतना भारी बना दिया कि वह उड़ कर स्वर्ग में नहीं जा सकता था। ईश्वर ने उसे और मोर को पति-पत्नी के रूप में स्वर्ग में जगह दी थी लेकिन मोर का मन दूसरी युवती के प्रति आकर्षित हो गया था। अत: मोर दूषित ह्रदय लिए स्वर्ग में वापिस नहीं आ सकता था। अपने किए गए अपराध के कारण उसे धरती पर ही रहना पड़ा।

कहते हैं कि मोर आज भी अपनी पत्नी के पास जाने की कोशिश करा रहा है। इसलिए हर सुबह जब धूप चमकती है, तो मोर बैचैन होकर इधर-उधर कूदता-फाँदता है। लाख प्रयत्न करने बाद भी जमीन से कुछ फीट ही ऊपर उड़ पाता है। इस प्रकार यह धरती बेचैन मोर का घर बन गई और सच्चा प्रेम करने वाली उसकी पत्नी के बहाए आँसू उसके पंखों की सुन्दरता बन गए। जो इस बात की याद दिलाते हैं कि मोर ने बाहरी आकर्षण के कारण सच्चे प्यार को ठोकर मार कर हमेशा के लिए सच्चा प्यार और स्वर्ग खो दिया। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि दूर के ढोल सुहावने।

— डॉ अनीता पंडा

डॉ. अनीता पंडा

सीनियर फैलो, आई.सी.एस.एस.आर., दिल्ली, अतिथि प्रवक्ता, मार्टिन लूथर क्रिश्चियन विश्वविद्यालय,शिलांग वरिष्ठ लेखिका एवं कवियत्री। कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन मेघालय एवं आकाशवाणी पूर्वोत्तर सेवा शिलांग C/O M.K.TECH, SAMSUNG CAFÉ, BAWRI MANSSION DHANKHETI, SHILLONG – 793001  MEGHALAYA [email protected]