लघुकथा – संजीवनी
गुलाबी जाड़े की रात के लगभग 11 बजे का समय था। सभी कदम चौक के प्रसिद्ध कम्पनीबाग की ओर अग्रसर थे। आज वहाँ रामलीला में लक्ष्मण शक्ति के दृश्य का मंचन होना था। चूंकि अधिकतर कलाकार मौहल्ले के ही थे, इसलिए भीड़ होना स्वाभाविक था।
बहुत ही सुन्दर दृश्य था। लगभग 5 हजार व्यक्तियों की भीड़ जमा हो गयी थी। तभी पर्दा खुलता है। प्रभु श्रीराम की जय-जयकार के नारे गूँज उठते हैं। दोनों ओर की सेनाएं एक दूसरे पर वार कर रही हैं। लक्ष्मण और मेघनाद में निर्णायक युद्ध छिड़ जाता है। बाण पर बाण फेंके जा रहे हैं। तभी मेघनाद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर लक्ष्मण जी को मूर्च्छित कर देता है। जनता में खामोशी छा जाती है। राम दल में शोक की लहर दौड़ जाती है। प्रभु श्री राम का विलाप देखकर सभी की आँखें नम हो जाती हैं। ऐसे में सुषेण वैद्य की सलाह पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने जाते हैं।
एक पतली किन्तु मजबूत रस्सी द्वारा हनुमान जी सड़की पर एक ऊँची बिल्डिंग से उतरते हुए मंच की ओर अग्रसर हैं। बजरंगबली की जय-जयकार के नारे लग रहे हैं। तभी लगभग 15 फीट की ऊँचाई से रस्सी का सिरा टूट जाता है और हनुमान जी संजीवनी बूटी लिये मध्य मार्ग में गिर जाते हैं। सभा में हल्की भगदड़ मच जाती है, परन्तु प्रभु श्री राम की कृपा से हनुमान जी को कोई क्षति नहीं पहुँचती है।
संजीवनी बूटी पाते ही लक्ष्मण जी पुनः होश में आ जाते हैं। जय श्री राम जय बजरंगबली के नारे गूँजने लगते हैं।
— नवल किशोर अग्रवाल