हमीद का बकरीद
जब से बिहार के लाखों लोग नियोजित भात, नियोजित दाल और नियोजित पापड़ खाने लगे हैं, उनका वेतन अबतक किसी भी माह समय पर नहीं मिल सका है ! अगर संयुक्त माहों के वेतन एकमुश्त दिए भी गए हैं, तो ऐसे नियोजित प्राणियों को विलम्बित वेतन से अर्जित ब्याजराशि भी उन्हें प्राप्त नहीं होते हैं। यह ब्याज की राशि सरकारी अधिकारियों के खाते में ही रह जाते हैं और ब्याज की राशि से नियोजितों के आगामी वेतन का भुगतान होते हैं ! सरकार बड़े मास्टरमाइंड से लेश हैं! जब-जब ‘ईद’ या ‘बकरीद’ आता है, हामिद और उनका चिमटा एक यक्ष प्रश्न लेकर आता है! तब के धनी मुस्लिम बच्चे गरीब ‘हामिद’ से कोई दयाभाव नहीं रख पाते हैं, किन्तु बहुत बार ललचाये ‘हामिद’ स्वाभिमान तले उन धनी बच्चों के बड़े पदधारक खिलौने को चिमटा दिखाए रखते हैं !