गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

साथ तेरा अगर नही होता।
तो ये आसां सफर नही होता।।
जो नही आफ़ताब होता तो।
यूं चमकता क़मर नही होता।।
करते पेड़ो की हम हिफाजत जो।
ऐसे रोता शहर नही होता।।
जो मुहब्बत न बेवफा होती।
तानों का फिर असर नही होता।।
खाक़ में मिल गये लाखों शह्र
ये न होता तो डर नही होता।।
उसको दिल में तो हम बसा लेते।
गैर का वो अगर नही होता।।
आँख सबकी भरी नही होती।
मौत का जो कहर नही होता।।
हम तो दोस्ती में जाँ लुटा देते।
वो अगर बेखबर नही होता।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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